बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

प्रोस्टेट कैंसर को समय रहते पहचानें


    

पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर फेफड़ों के कैंसर के बाद सर्वाधिक पाया जाने वाला कैंसर है। 95 प्रतिशत प्रोस्टेट कैंसर 65-89 वर्ष के पुरुषों में पाया जाता है लेकिन कभी-कभी इस बीमारी को 45-64 वर्ष के पुरुषों में भी पाया गया है। यह कैंसर प्रोस्टेट ग्लैंड में होता है। प्रोस्टेट ग्लैंड अखरोट के आकार की एक ग्रंथि है जो यूरेथरायानी पेशाब की नली के आसपास होती है। इसका कार्य शुक्र में मौजूद एक द्रव का निर्माण करना है। प्रोस्टेट कैंसर की चार अवस्थाएं होती हैं जिसमें पहली अवस्था में कैंसर ग्रंथि के अंदर ही सीमित रहता है। इसका पता अन्य बीमारी की जांचों में अकस्मात ही चल जाता है। दूसरी अवस्था में कैंसर ग्रंथि के अंदर थोड़ा फैला हुआ होता है। इस अवस्था में चिकित्सक प्रोस्टेट में उपस्थित गांठों को छूकर जान पाते हैं।
तीसरी अवस्था में कैंसर ग्रंथि के बाहर फैल चुका होता है जैसे शुक्राणुओं को एकत्रित करने वाली थैली (सेमीनल वेसीकल्स) या गुर्दे की नली (यूरेटर)। चौथी अवस्था में कैंसर की कोशिकाएं शरीर के विभिन्न स्थानों जैसे लिम्फ नलिकाओं (लिमफैटिक्स) के द्वारा यह गिल्टियों (लिम्फ नोडस) में फैलता है। साथ ही यह रक्त नलिकाओं के द्वारा शरीर के दूसरे हिस्सों में जैसे हड्डियों, फेफड़ों, लिवर और मस्तिष्क में फैलता है। यदि इस बीमारी का प्रारंभिक अवस्था में पता लगा लिया जाए तो उपचार संभव है। इन मरीजों में उपचार के बाद 5-10 वर्ष जीने की संभावना बढ़ जाती है। इसके विपरीत अधिक फै ली हुई बीमारी में उपचार के बाद पांच वर्ष तक जीने की संभावना सिर्फ 10-25 प्रतिशत ही रह जाती है।
प्रोस्टेट कैंसर के कारण प्रोस्टेट कैंसर के वास्तविक कारणों का अभी तक पूरी तरह से पता नहीं लग पाया है लेकिन कु छ संभावित कारण इस प्रकार हैं:- . अनुवांशिकता (पिता से पुत्र में) . अधिक चिकनाई युक्त भोजन . भोजन में लायकोपिन’(सभी लाल फलों में पाया जाता है) वाले भोज्य पदार्थो का कम सेवन . विटामिन-ई की कमी . अधिक धूम्रपान एवं मांसाहारी भोजन तथा वसा का सेवन प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण कैंसर की प्रारंभिक अवस्था में रोगी में बीमारी के कोई लक्षण नहीं पाए जाते हैं। कैंसर के कारण प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने लगती है और मूत्र नली पर दबाव पड़ता है, जिससे मूत्र क्रिया में रुकावट होती है और मूत्र की धार धीमी हो जाती है। मूत्र त्याग के लिए बार-बार जाना पड़ता है फिर भी संदेह बना रहता है। इसके अतिरिक्त मूत्र प्रवाह रुकना, मूत्र में रक्त आना या मूत्र त्याग न रोक पाना जैसे कारण भी हो सकते हैं लेकिन रोग अधिक बढ़ने की स्थिति में मूत्र प्रक्रिया के लक्षणों के साथ-साथ कमर या शरीर की अन्य हड्डियों में अत्यधिक दर्द होता है। फेफड़ों में बीमारी फैलने की स्थिति में खांसी तथा बलगम में रक्त आ सकता है। साथ ही हड्डियों में कैंसर फैलने पर कमर के पिछले हिस्से में दर्द, पैरों में कमजोरी और सुन्नपन का अहसास, मल-मूत्र का बिना किसी आभास के अपने आप निकल जाना, जिस हड्डी में कैंसर फैल चुका है वहां से हड्डी का टूट जाना, वजन में गिरावट, कमजोरी और एनीमिया इत्यादि जैसे लक्षण पाए जाते हैं।
इलाज के अभाव में दुष्प्रभाव . प्रोस्टेट कैं सर में यदि सही समय पर इलाज नहीं किया गया तो पेशाब की थैली में रुकावट होने से पेट की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और हार्नियाबन जाता है। हार्निया बनने पर मरीज के पेट के निचले हिस्से में सूजन आ जाती है तथा उसमें आंत उलझने का भी डर बना रहता है।
. कभी-कभी मूत्राशय में रुकावट न होकर सीधे गुर्दे की नलियों (यूरेटर) में अवरोध हो सकता है जिससे गुर्दे में संक्रमण की प्रबल संभावना होती है। इस कारण मरीज को जाड़ा लगकर तेज बुखार आता है और गुर्दे में मवाद बनने का डर रहता है। इससे गुर्दे नष्ट हो सकते हैं। साथ ही पथरी बनने की भी संभावना होती है।
. शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलने से कैंसर कोशिकाएं द्वारा स्पाइनल कॉर्ड तथा उससे निकलने वाली नसों पर दबाव उत्पन्न होता है जिससे पैरों में दर्द, कमजोरी, सुन्नपन, लकवा और मल-मूत्र त्याग का अहसास खत्म हो सकता है।
. मस्तिष्क में फैलने पर सिर में दर्द, मिरगी के दौरे, बेहोशी और कोमा की स्थिति आ सकती है।
. फेफड़ों में फैलने से खांसी में रक्त आ सकता है। सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।
. गुर्दे में फैलने से गुर्दे कमजोर और पीलिया हो सकता है। इन सभी कारणों से मृत्यु की संभावना प्रबल होती है। प्रोस्टेट कैंसर की जांच कैंसर की जांच करने के लिए मरीज के मूत्र में किस प्रकार के जीवाणु से संक्रमण है, गुर्दे के क्रियान्वयन और प्रोस्टेट स्पेसिफिक एन्टिजन (पी.एस.ए.) के लिए रक्त की जांच, अल्ट्रासाउंड द्वारा मूत्रवाहिनी तंत्र और प्रोस्टेट गं्रथि की जांच की जाती है। रोग अधिक फैलने की स्थिति में हड्डियों का एक्स-रे किया जाता है। इन सभी के अतिरिक्त कैंसर के लक्षण मिलने पर प्रोस्टेट बायोप्सी सबसे महत्त्वपूर्ण जांच है। जांच में बीमारी की स्टेज पता लगने के बाद शल्य चिकित्सा या रेडियोथेरेपी के द्वारा इलाज किया जाता है। साथ ही प्रोस्टेट कैंसर के मरीज इस बात का भी ध्यान रखें कि वे भारी वजन न उठाएं, सीढ़ियों पर तेज न भागें, एकाएक दवाई न छोड़ें, नए लक्षणों को नजरअंदाज न करें। कमर की हड्डी का हल्का व्यायाम करें, प्रात:काल टहलें, संतुलित शाकाहारी भोजन खाएं, टमाटर के सूप का सेवन करें, हरी चाय पीएं, लहसुन और अलसी के बीजों का सेवन करें।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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