सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

चालाकी का फल



पूर्णिमा वर्मन एक थी बुढ़िया, बेहद बूढ़ी पूरे 90 साल की। एक तो बेचारी को ठीक से दिखाई नहीं पड़ता था ऊपर से उसकी मुर्गियां चराने वाली लड़की नौकरी छोड़ कर भाग गयी। बेचारी बुढ़िया! सुबह मुर्गियों को चराने के लिये खोलती तो वे पंख फड़फड़ाती हुई सारी की सारी बुढ़िया के घर की चारदीवारी फांद कर अड़ोस-पड़ोस के घरों में भाग जातीं और कों कों कुड़कुड़ करती हुई सारे मोहल्ले में हल्ला मचाती हुई घूमतीं। कभी वे पड़ोसियों की सब्जियां खा जातीं तो कभी पड़ोसी काट कर उन्हीं की सब्जी बना डालते। दोनों ही हालातों में नुकसान बेचारी बुढ़िया का होता। जिसकी सब्जी बर्बाद होती वह बुढ़िया को भला बुरा कहता और जिसके घर में मुर्गी पकती उससे बुढ़िया की हमेशा की दुश्मनी हो जाती। हार कर बुढ़िया ने सोचा कि बिना नौकर के मुर्गियां पालना उसकी जैसी कमजोर बुढ़िया के बस की बात नहीं। भला वो कहां तक डंडा लेकर एक-एक मुर्गी हांकती फिरे? जरा-सा काम करने में ही तो उसका दम फूल जाता था। बुढ़िया निकल पड़ी लाठी टेकती नौकर की तलाश में। पहले तो उसने अपनी पुरानी मुर्गियां चराने वाली लड़की को ढूंढा। लेकिन उसका कहीं पता नहीं लगा। यहां तक कि उसके मां-बाप को भी नहीं मालूम था कि लड़की आखिर गयी तो गयी कहां? नालायक और दुष्ट लड़की! कहीं ऐसे भी भागा जाता है? न अता न पता सबको परेशान कर के रख दिया। बुढ़िया बड़बड़ायी और आगे बढ़ गयी।
थोड़ी दूर पर एक भालू ने बुढ़िया को बड़बड़ाते हुए सुना तो वह घूम कर सड़क पर आ गया और बुढ़िया को रोक कर बोला, गु र्र र , बुढ़िया नानी नमस्कार! आज सुबह सुबह कहां जा रही हो? सुना है तुम्हारी मुर्गियां चराने वाली लड़की नौकरी छोड़ कर भाग गयी है। न हो तो मुङो ही नौकर रख लो। खूब देखभाल करूंगा तुम्हारी मुर्गियों की।
अरे हट्टो, तुम भी क्या बात करते हो? बुढ़िया ने खिसिया कर उत्तर दिया, एक तो निरे काले मोटे बदसूरत हो मुर्गियां तो तुम्हारी सूरत देखते ही भाग खड़ी होंगी। फिर तुम्हारी बेसुरी आवाज उनके कानों में पड़ी तो वे मुड़कर दड़बे की ओर आएंगी भी नहीं।
एक तो मुर्गियों के कारण मुहल्ले भर से मेरी दुश्मनी हो गयी है, दूसरा तुम्हारे जैसा जंगली जानवर और पाल लूं तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाए। छोड़ो मेरा रास्ता मैं खुद ही ढूंढ लूंगी अपने काम की नौकरानी।
बुढ़िया आगे बढ़ी तो थोड़ी ही दूर पर एक सियार मिला और बोला, हुआं-हुआं राम-राम बुढ़िया नानी किसे खोज रही हो? बुढ़िया खिसिया कर बोली, अरे खोज रहीं हूं एक भली सी नौकरानी जो मेरी मुर्गियों की देखभाल कर सके। देखो भला मेरी पुरानी नौकरानी इतनी दुष्ट छोरी निकली कि बिना बताए कहीं भाग गयी अब मैं मुर्गियों की देखभाल कैसे करूं? कोई कायदे की लड़की बताओ जो सौ तक गिनती गिन सके ताकि मेरी सौ मुर्गियों को गिन कर दड़बे में बन्द कर सकें।
यह सुन कर सियार बोला, बुढ़िया नानी ये कौन सी बड़ी बात है? चलो अभी मैं तुम्हें एक लड़की से मिलवाता हूं। मेरे पड़ोस में ही रहती है। रोज जंगल के स्कूल में पढ़ने जाती है इस लिये सौ तक गिनती उसे जरूर आती होगी। अकल भी उसकी खूब अच्छी है। शेर की मौसी है वो, आओ तुम्हें मिलवा ही दूं उससे। बुढ़िया लड़की की तारीफ सुन कर बड़ी खुश होकर बोली, जुग-जुग जियो बेटा, जल्दी बुलाओ उसे कामकाज समझ दूं। अब मेरा सारा झंझट दूर हो जाएगा। लड़की मुर्गियों की देखभाल करेगी और मैं आराम से बैठकर मक्खन बिलोया करूंगी।
सियार भाग कर गया और अपने पड़ोस में रहने वाली चालाक पूसी बिल्ली को साथ लेकर लौटा।
पूसी बिल्ली बुढ़िया को देखते ही बोली, म्याऊं, बुढ़िया नानी नमस्ते। मैं कैसी रहूंगी तुम्हारी नौकरानी के काम के लिये? नौकरानी के लिये लड़की की जगह बिल्ली को देखकर बुढ़िया चौंक गयी। बिगड़ कर बोली, हे भगवान कहीं जानवर भी घरों में नौकर हुआ करते हैं? तुम्हें तो अपना काम भी सलीके से करना नहीं आता होगा। तुम मेरा काम क्या करोगी?
लेकिन पूसी बिल्ली बड़ी चालाक थी। आवाज को मीठी बना कर मुस्कुरा कर बोली, अरे बुढ़िया नानी तुम तो बेकार ही परेशान होती हो। कोई खाना पकाने का काम तो है नहीं जो मैं न कर सकूं। आखिर मुर्गियों की ही देखभाल करनी है न? वो तो मैं खूब अच्छी तरह कर लेती हूं। मेरी मां ने तो खुद ही मुर्गियां पाल रखी हैं। पूरी सौ हैं। गिनकर मैं ही चराती हूं और मैं ही गिनकर बन्द करती हूं। विश्वास न हो तो मेरे घर चलकर देख लो। एक तो पूसी बिल्ली बड़ी अच्छी तरह बात कर रही थी और दूसरे बुढ़िया काफी थक भी गयी थी इसलिये उसने ज्यादा बहस नहीं की और पूसी बिल्ली को नौकरी पर रख लिया।
पूसी बिल्ली ने पहले दिन मुर्गियों को दड़बे में से निकाला और खूब भाग दौड़ कर पड़ोस में जाने से रोका। बुढ़िया पूसी बिल्ली की इस भाग-दौड़ से संतुष्ट होकर घर के भीतर आराम करने चली गयी। कई दिनों से दौड़ते भागते बेचारी काफी थक गयी थी तो उसे नींद भी आ गयी। इधर पूसी बिल्ली ने मौका देखकर पहले ही दिन छ: मुर्गियों को मारा और चट कर गयी।
बुढ़िया जब शाम को जागी तो उसे पूसी की इस हरकत का कुछ भी पता न लगा। एक तो उसे ठीक से दिखाई नहीं देता था और उसे सौ तक गिनती भी नहीं आती थी। फिर भला वह इतनी चालाक पूसी बिल्ली की शरारत कैसे जान पाती? अपनी मीठी-मीठी बातों से बुढ़िया को खुश रखती और आराम से मुर्गियां चट करती जाती।
पड़ोसियों से अब बुढ़िया की लड़ाई नहीं होती थी क्योंकि मुर्गियां अब उनके आहाते में घुस कर शोरगुल नहीं करती थीं। बुढ़िया को पूसी बिल्ली पर इतना विश्वास हो गया कि उसने मुर्गियों के दड़बे की तरफ जाना छोड़ दिया।
धीरे-धीरे एक दिन ऐसा आया जब दड़बे में बीस पच्चीस मुर्गियां ही बचीं। उसी समय बुढ़िया भी टहलती हुई उधर ही आ निकली। इतनी कम मुर्गियां देखकर उसने पूसी बिल्ली से पूछा, क्यों री पूसी, बाकी मुर्गियों को तूने चरने के लिये कहां भेज दिया?
पूसी बिल्ली ने झट से बात बनाई, अरे और कहां भेजूंगी बुढ़िया नानी। सब पहाड़ के ऊपर चली गयी हैं। मैंने बहुत बुलाया लेकिन वे इतनी शरारती हैं कि वापस आती ही नहीं।
हे भगवान! ये शरारती मुर्गियां। बुढ़िया का बड़बड़ाना फिर शुरू हो गया, अभी जाकर देखती हूं कि ये इतनी ढीठ कैसे हो गयी हैं? पहाड़ के ऊपर खुले में घूम रही हैं। कहीं कोई शेर या भेड़िया आ ले गया तो बस! ऊपर पहुंच कर बुढ़िया को मुर्गियां तो नहीं मिलीं। मिलीं सिर्फ उनकी हड्डियां और पंखों का ढेर! बुढ़िया को समझते देर न लगी कि यह सारी करतूत पूसी बिल्ली की है। वह तेजी से नीचे घर की ओर लौटी।
इधर पूसी बिल्ली ने सोचा कि बुढ़िया तो पहाड़ पर गयी अब वहां सिर पकड़ कर रोएगी जल्दी आएगी नहीं। तब तक क्यों न मैं बची-बचाई मुर्गियां भी चट कर लूं? यह सोच कर उसने बाकी मुर्गियों को भी मार डाला। अभी वह बैठी उन्हें खा ही रही थी कि बुढ़िया वापस लौट आई।
पूसी बिल्ली को मुर्गियां खाते देखकर वह गुस्से से आग बबूला हो गयी और उसने पास पड़ी कोयलों की टोकरी उठा कर पूसी के सिर पर दे मारी। पूसी बिल्ली को चोट तो लगी ही, उसका चमकीला सफेद रंग भी काला हो गया। अपनी बदसूरती को देखकर वह रोने लगी।
आज भी लोग इस घटना को नही भूले हैं और रोती हुई काली बिल्ली को डंडा लेकर भगाते हैं।
चालाकी का उपयोग बुरे कामों में करने वालों को पूसी बिल्ली जैसा फल भोगना पड़ता है।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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