मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

बसंत पंचमी क्यों है महत्त्वपूर्ण


                      

प्रत्येक वर्ष माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। देवी सरस्वती के इस प्राकट्य पर्व को सर्वसिद्धिदायक पर्व माना जाता है। माघ माह में जब सूर्य देवता उत्तरायण रहते हैं तो गुप्त नवरात्रि के मध्य पंचमी तिथि को लोक प्रसिद्ध स्वयंसिद्ध मुहूर्त के रूप में माना जाता है।
वागीश्वरी जयंती और श्रीपंचमी शास्त्रों के अनुसार यह दिन प्रत्येक शुभ कार्य के लिए अतिश्रेष्ठ माना जाता है। प्रकृति के चितेरों, साहित्य मनीषियों और कवियों ने इस दिन को अपनेअ पने तरीके से परिभाषित किया है। यह विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना का दिन है। इस तिथि को वागीश्वरी जयंती और श्रीपंचमी नाम से भी जाना जाता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि यदि यौवन हमारे जीवन का बसंत है तो बसंत इस सृष्टि का यौवन है। गीता में भी कहा गया है कि बसंत ऋतु के रूप में भगवान कृष्ण प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होते हैं।
ज्योतिषि कर्म फलदायी यह दिन ज्योतिषिप्रेमियों के लिए भी बेहद शुभ होता है। इस दिन किए गए कार्य का फल कई गनुा मिलता है। ज्योतिषीय दृष्टि से पांचवीं राशि के अधिष्ठाता भगवान सूर्य नारायण होते हैं इसलिए बसंत पंचमी अज्ञान का नाश करके प्रकाश की ओर ले जाती है। अबूझ मुहूर्त होने से इस दिन शादी-विवाह के लिए मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए इस दिन को लोककल्याणकारी माना गया है।
देवी सरस्वती का प्राकट्योत्सव बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का विशेष पूजन किया जाता है। इस दिन विवाह, गृह प्रवेश, पद भार, विद्यारंभ, वाहन, भवन खरीदना आदि कार्य अतिशुभ और विशिष्ट होते हैं।
इस दिन हर कार्य सफल प्रत्येक कार्य का संचालन बुद्धि, विवेक और ज्ञान के आधार पर ही होता है इसलिए विद्या-बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के जन्मदिवस से किसी भी कार्य का शुभारंभ किया जाए तो वह कार्य सफल होगा।
ग्रीष्म और शीत का संधिकाल संवत्सर चक्र का परिवर्तन बसंत पंचमी पर्व का मुख्य ध्येय है। यह ग्रीष्म और शीत का संधिकाल है। हमारी सारस्वत शक्तियों के पुनर्जागरण के लिए इस पर्व का विशेष महत्त्व है। सृष्टि का संयोग इसी दिन से प्रारंभ होता है।
इसलिए इस दिन देवी सरस्वती और भगवान कृष्ण के साथ कामदेव व रति की पूजा की भी परंपरा है। इस माह को मधुमास भी कहा जाता है। सरस्वती को बुद्धि और ज्ञान के साथ ही संगीत व कला की देवी भी माना जाता है।
प्रकृति के चितेरों, साहित्य मनीषियों और कवियों ने इस दिन को अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया है।

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Source – KalpatruExpress News Papper

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