बुधवार, 5 मार्च 2014

जानें याक के बारे में


तिब्बत के ठंडे तथा वीरान पठार, नेपाल और भारत के कुछ उत्तरी इलाकों में याक आठदस हजार फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है। यह काला, भूरा, सफेद या धब्बेदार हो सकता है। याक का शरीर घने, लम्बे और खुरदरे बालों से ढका रहता है। जाड़े के मौसम में ये बाल और अधिक घने तथा लम्बे हो जाते हैं, इस कारण वह तिब्बत के विषम जाड़े में, शून्य से 40 डिग्री से भी कम तापमान में, आराम के साथ बाहर रह जाता है। वयस्क याक 6 फुट तक ऊ ंचा होता है और उसका वजन एक टन तक हो सकता है। याक उस घास पर जीवित रहते हैं, और बड़े चाव से खाते हैं, जिसे अन्य पशु देखना तक नहीं चाहते हैं।
जब पहाड़ी ढाल पर घनी बर्फ जमी होती है, तो वह अपने नुकीले सींगों से दबी घास के ऊपर की बर्फ़ को हटाकर घास खोज लेता है और जाड़े के मौसम में जब पानी जम जाता है तो वह बर्फ़ खाकर अपनी प्यास बुझता है।
इस प्रकार कठिन परिस्थितियों में भी वह मजे से जीवन निर्वाह करता है। याक तिब्बत निवासियों का मुख्य धन है। उसकी खाल से वे अपने लिए ऊनी वस्त्र बनाते हैं। याक के बाल से स्त्रियां तम्बुओं के लिए कपड़े तैयार करती हैं। इसके बाल की रस्सियां बहुत मजबूत होती है। बोझ ढोने के अतिरिक्त याक तिब्बत वासियों को दूध, मक्खन, पनीर, शिकार, चमड़ा, ऊन तथा गोबर देता है जिनका उपयोग आग तापने व भोजन बनाने में किया जाता हैं।
प्रकृति ने उसे यह जानने की शक्ति दी है कि किसी बर्फ की जमी हुई सतह उसके भार को सहन कर सकेगी या नहीं। शंकित यात्री ऐसे स्थल के विषय में निश्चिंत होने के लिए याक को अपने आगे ही रखते हैं। घोड़े के समान याक भी कभी रास्ता नहीं भूलता है, उसे उत्तम दिशा का ज्ञान होता है।
देवस्थलों में पूजा के समय मूर्तियों के सम्मुख हिलाया जाने वाला चंवर याक की ही दुम के बालों से बनाए जाता है, याक को उत्तराखंड में चंवरी गाय कहते हैं। सफेद चंवर सर्वोत्तम माना जाता है। इस पर हिन्दू सोने या चांदी का मुठ्ठा चढ़ा देते हैं, जो देवस्थल तथा उत्सवों की शोभा बढ़ाने के लिए हिलाया- डुलाया जाता है।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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