सोमवार, 17 मार्च 2014

होली पर बरसते प्रेम से भीगे कोड़े



जब समूचा देश होी की खुमारी उतार रहा होता है, तो बदेव के युवक कोड़ों की मार ङोते हैं। 
यह कोई सजा नहीं है, मस्ती है होली की। होी के अगे दिन दौज पर दाऊजी मंदिर परिसर में 
होता है बदेव का यह हुरंगा। जहां बरसाना में होली की मस्ती में महिलाएं स्नेह भाव से पुरुषों पर 
लट्ठ बरसाती है वहीं, बलदेव में यह कपड़े के कोड़े का रूप ले लेता है। यहां महिायें होी खेने 
वाे युवकों के कपड़े फाड़कर उन्हीं से कोड़े बनाती हैं। इन कोड़ों से होली खेलने वाले युवकों की
 पिटाई की जाती है। युवक अपने बचाव के िये टेसू के रंग महिाओं पर फेंकते चते हैं। हुरंगा 
गोकु¶, गोवर्धन, महावन में भी होता है। इनका अंदाज अग है। गोकुके हुरंगे में हुरियारों को डंडी 
की मार पड़ती है, तो ोहवन और बरारी में तीज पर हुरंगा होता है। इन सभी स्थानों पर कीचड़ की
 होरी गांवों में खेी जाती है। ब्रज की होली कृष्ण केंद्रित है, तो हुरंगा उनके ज्येष्ठ भ्राता बलराम 
पर केंद्रित है। कृष्ण जन्मभूमि से 24 किमी. दूर उनके बड़े भाई बलराम की नगरी है बलदेव जो 
दाऊजी के नाम से भी प्रसिद्ध है। दाऊ की नगरी बलदेव स्थित ठाकुर श्री दाऊदयाल के मंदिर में 
अबीर गुलाल और रंग भरी पिचकारी के मध्य दाऊजी का हुरंगा होता है।
हुरंगा अपने वृद्ध रूप के लिए अति प्रचलित है।
कहावत है भी कि होली नाई आज हुरंगा है
यह हुरंगा इतना लोकप्रिय है कि इसे देखने के लिए दूर-दराज से लोग सुबह से ही बैठ जाते हैं। 
 जब तक हुरंगा समाप्त नहीं होता लोग जमे रहते हैं। हुरंगा का एक नाम फाग भी है। मंदिर में 
बड़े-बड़े हौजों में टेसू के फूलों से बने रंगों को भर दिया जाता है। साथ ही मंदिर में ढप, झंज, मृदंग
मजीरा आदि पर होली के गीत गाये जाते हैं। गाने-बजाने के पश्चात दोपहर करीब बाहर बजे मंदिर
 के कपाट दर्शन हेतु खुलते हैं और फिर भगवान बलराम तथा रेवती माता के समक्ष हुरंगा प्रारंभ हो 
जाता है। मंदिर प्रांगण दर्शकों से खचाखच भरा रहता है। हुरंगा को खेलने वाले सभी 
हुरियारे-हुरियारिन एक तरह से गोप-गोपिकाओं के स्वरूप में होली खेलते हैं। हुरियारिन-हुरियारों के 
कमर से ऊपर के कपड़े फाड़कर इन कपड़ों के कोड़े बनाकर उनसे गीले बदन पर हुरियारों की 
जमकर पिटाई करती हैं। इसके साथ ही होली के उत्सवों की समाप्ति होने लगती है। अगर कोई 
कोड़े की होली देखने आता है, तो वह भी इन हुरियारिनों के रंग से लबालब कोड़े का स्वाद चखे बिना
 नहीं जाता।
ब्रज के राजा भांग पीवै तो आजा-
 मंदिर प्रांगण में पानी की टंकी के पास बने मंच पर श्रीकृष्ण, बलराम, राधा व सखियों के स्वरूप 
विराजमान होते हैं। मंदिर के चौक में परंपरागत रूप से समाज गायन सुबह से शुरू होता है। ठाकुर 
दाऊजी महाराज व माता रेवती के विग्रह को श्वेत पोशाक धारण कराई जाती है। बलदाऊजी के हुरंगा में परंपरानुसार हुरियारे अपने-अपने निवास पर भांग घोंटकर श्री दाऊजी महाराज का भोग लगाते हुए 
कहते हैं दाऊदयाल ब्रज के राजा भांग पीवै तो यहां पै आजा।इस बार लोगों का हुजूम बल्देव की 
होली देखने उमड़ने लगा है।
होरी नाय हुरंगा है
होरी नाय हुरंगा है. जैसे स्वरों के साथ गोप समूह मंदिर प्रांगण में बने विशाल हौजों की तरफ
 लपकते दिखाई देते हैं। वे टेसू के रंग से भरे हौज से बाल्टियां भर-भर गोपिकाओं को रंगों में 
सराबोर करने को उत्सुक दिखते हैं। सैकड़ों हुरियारे हुरियारिनों के ऊपर मंदिर प्रांगण में बने तीनों 
हौजों के रंग को उड़ेलते हैं। लगातार तीन ट्यूबलों से निरंतर हौजों में जलापूर्ति दी जाती है। उनमें 
रंग घोला जाता है। पूरा मंदिर प्रांगण कुछ ही क्षणों में विभिन्न रंगों में डूबने लगता है। इस बीच 
छज्जों से कुछ युवक गुलाल की वर्षा करते हैं और गाते हैं- उड़त गुलाल लाल भए बदरा. बलदेव जी 
स्थित ठाकुर श्रीदाऊजी महाराज के मंदिर में बसंत पंचमी के दिन से ही दाऊजी की सेवा में गुलाल 
का प्रयोग होने लगता है।
साथ ही होली के पद गाये जाने प्रारंभ हो जाते हैं।
वर्दी वालों पर भी बरसते हैं कोड़े-

 हुरंगा की सुरक्षा व्यवस्था में लगे पुलिसकर्मी भी हुरियारिनों के कोड़ों से नहीं बच पाते। सुरक्षा कर्मी 
भी बलदेव की इस होली का पूरा आनन्द उठाते हैं। हुरियारिनें रंग से भीगा हुआ वस्त्रों का कोड़ा 
पुलिसकर्मियों के साथसा थ हर निकलने वालों को मारती हैं। सबको प्रेम से गुलाल लगाया जाता है। 
जिस तरफ हुरियारिनों की टोली निकलती दिखाई देती है, भगदड़ सी मच जाती है। इस बीच 
हुरियारिनें विदेशी श्रद्धालुओं को भी नहीं छोड़तीं।
कन्हैया और बलदेव जयकारों के साथ वे भी प्रेम के रंग में डूब जाते हैं।
और कोड़े खाते हैं। हुरंगा देखने के लिए दाऊजी महाराज मंदिर के सामने वाली छत पर वीआइपी 
दर्शक दीर्घा भी बनाई जाती है।
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Source – KalpatruExpress News Papper



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