शुक्रवार, 28 मार्च 2014

नौ दिन माता बाकी दिन तांता



वेदों में लिखा है कि जीवह जीवस्य भोजनम् यानी किसी भी जीव को जीवित रहने के लिए अन्य किसी जीव पर निर्भर रहना पड़ता है चाहे वह शाकाहारी हो या मांसाहारी। नवरात्रि के दिनों में अचानक ही लोगों का हृदय परिवर्तन हो जाता है, खासकर मांसाहारियों का। साल भर जिन मांसाहारी होटलों पर शौकीनों का तांता लगा रहता है, वासंतिक नवरात्रि के नौ दिन उनके लिए भारी पड़ जाते हैं। इस पर रिया तुलसियानी की रिपोर्ट..
वासंतिक नवरात्रि इस वर्ष 31 मार्च से शुरू हो रहे हैं।
बाजारों में हलचल शुरू हो गई है। मातारानी की सजावट के सामानों से दुकानें सजी हुई हैं। कुछ लोगों ने व्रत और पूजा के सामानों की खरीदारी शुरू कर दी है तो कुछ अभी फेहरिस्त में जुटे हैं। एक तरफ जहां पंसारी की दुकानों पर आवाजाही बढ़ती है तो वहीं कुछ दुकानें ऐसी भी हैं जहां नवरात्रि में मंदी छा जाती है। लखनऊ की प्रसिद्ध चिकन- मटन की दुकानों की गलियां इन दिनों सूनी नजर आती हैं।
असल बात यह है कि होटलों-ढाबों में मांसाहारी खाने के शौकीन ज्यादातर हिन्दू समुदाय के लोग हैं। मुस्लिम समुदाय को बाहर आकर मांसाहारी भोजन खाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है क्योंकि उनके घरों में वह आसानी से बन जाता है। उनके घरों की महिलाएं मांसाहारी भोजन बनाने में माहिर होती हैं लेकिन हिन्दू परिवारों में ऐसा नहीं है। कई हिन्दू घरों में मूर्ति पूजा की अधिक मान्यता के कारण मांसाहार पकाने से गुरेज किया जाता है।
कई बार ऐसा माहौल न होने के बावजूद घर के बड़े बुजुर्ग मांसाहारी खाना गलत समझते हैं। न खुद खाते हैं और न ही छोटों को घर में खाने की इजाजत देते हैं। अब भला शौकीनों को यह बात कहां समझ में आती है कि घर के बड़े शाकाहारी हैं तो हमें भी परहेज करना है। उन्हें घर में नहीं तो घर के बाहर ही सही, लेग पीस का लुत्फ उठाना है। देखा जाए तो इन्हीं हिन्दू परिवारों की वजह से मांसाहारी होटलों का व्यापार जोर पकड़े हुए है। अगर ये न खाएं तो बेचारे चिकन-मटन वाले दुकानदार ग्राहकों की राह देखते रह जाएं। हालत यह है कि नवरात्रि के दिनों में कई दुकानदार नौ दिन तक छुट्टी मनाते हैं। उनके लिए यह टाइम आउट ऑफ सीजन है जिसमें वे फेमिली ट्रिप पर जाते हैं या घर में आराम से खाते-पीते-सोते मौज काटते हैं। नौ दिन आराम फरमाने के बाद जब दशमी को होटल पर भीड़ लगती है तो वे भी कमर कस कर लच्छेदार प्याज काटने में लग जाते हैं।
कहीं इंतजार तो कहीं बंदी-
 लखनऊ में चौक के टुण्डे के कबाब हों या हजरतगंज का दस्तरख्वान या फिर आलमबाग का चावला और बाबा मटन, दिन भर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है। लेकिन, नवरात्रि में आधे से ज्यादा ग्राहक यहां का रास्ता भूल जाते हैं। लखनऊ के टेढ़ी पुलिया बाबा मटन के मालिक महादेव बताते हैं कि पिछले छह सालों से होटल चला रहे हैं लेकिन नवरात्रि में बंद करना पड़ता है। खर्चा भी नहीं निकल पाता है इसलिए बंद करना ही फायदे का सौदा होता है। इससे हमें यह भी फायदा होता है व्यवसाय का नुकसान किए बिना कुछ समय परिवार के साथ बिताने का मौका मिल जाता है।
इस बार पूरे नौ दिन हिल स्टेशन पर बिताने का मूड बनाया है। घरवाले भी फिर पूरे साल शिकायत नहीं करते हैं। वहीं टेढ़ी पुलिया के ही टुण्डे कबाब के बावर्ची मोहम्मद इमरान बताते हैं कि हम लोग ये नौ दिन बहुत मुश्किल से बिताते हैं। आधे से अधिक ग्राहक कम हो जाते हंै। दिन भर ग्राहकों का इंतजार रहता है। वैसे तो एक मिनट भी सोचने की फुरसत नहीं रहती है। शाम होते ही कुछ पैंकिं ग वाले तो कुछ यहीं खड़े होकर खाने वालों का तांता लग जाता है। वहीं हजरतगंज स्थित दस्तरख्वान के मैनेजर अली बताते हैं कि वासंतिक नवरात्र मांसाहारी दुकानदारों के लिए बहुत महंगे पड़ जाते हैं। लगभग 80 फीसदी ग्राहक कम हो जाते हैं।
यहां 90 फीसदी ग्राहक हिन्दू परिवारों के हैं इसलिए नवरात्रि में हमें बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। कई दुकानदार होटल बंद कर देते हैं लेकिन हम सोचते हैं कि 20 फीसदी ग्राहकों से भी कारीगरों के वेतन का खर्च तो निकलेगा इसलिए खोल लेते हैं। लेकिन, नवरात्रि के दौरान पड़ने वाले मंगलवार को बहुत सन्नाटा रहता है उस दिन बचे हुए ग्राहकों का रुख भी यहां के बजाय हनुमान मंदिर की तरफ होता है इसलिए उस मंगलवार बंद रखते हैं।
नौ दिन की डायटिंग-
 धर्म और आस्था को अधिक महत्त्व न देने वाले भी नवरात्रि में देवी पूजन को विशेष महत्त्व देते हैं। कारण भले ही कोई भी हो लेकिन साल में 18 दिन वे खुद को बदलने की कोशिश जरूर करते हैं। लेकिन, सवाल यह उठता है कि क्या फायदा इस प्रकार के रुटीन का जिसे नौ दिन बाद सूली पर चढ़ना है। या फिर यूं कहें कि दिल के बहलाने को गालिब ये खयाल अच्छा है। क्या सोच कर लोग नवरात्रि में मांसाहारी से परहेज करते हैं, इस पर कानपुर निवासी जितेन्द्र लालवानी बताते हैं कि वह मांसाहारी व्यंजनों के इतने अधिक शौकीन हैं कि हफ्ते में दो या तीन बार तो उन्हें खाना ही है। लेकिन, उन्होंने भी सोच लिया है कि जी भर के खाएंगे लेकिन साल में दो बार पूरे नौ दिन देवी मां को खुश करेंगे। देवी मां तो खुश होंगी ही साथ ही नौ दिन के उपवास के बहाने डाइटिंग भी हो जाएगी। सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।
वहीं लखनऊ में आलमबाग निवासी मोहित कुमार भी मांसाहारी खाने के बहुत शौकीन हैं। कहते हैं खाना नहीं चाहता हूं लेकिन खुशबू इतनी लाजवाब होती है कि वहां से गुजरते हुए न रुकना संभव नहीं हो पाता है। हर बार यही खयाल आता है कि बस आज खा लेता हूं। इसी कारण से कभी छोड़ नहीं पाया लेकिन नवरात्रि में रुटीन बदलने के लिए जानबूझकर नौ दिन का प्रण लेता हूं। इसके पीछे कोई श्रद्धा या धार्मिक भावना नहीं है। यह मैं अपने लिए करता हूं। इन सब से अलग विकास नगर निवासी विजय लाहौरी बताते हैं उनका मांसाहारी भोजन का शौक उनकी पत्‍नी मोना को कतई पसंद नहीं है। इसलिए पत्‍नी को खुश करने के लिए नौ दिन तक बाहर नहीं खाता हूं। घर में जो भी दाल सब्जी बने, नवरात्रि खत्म होने के इंतजार में चुपचाप खा लेता हूं।
अलीगंज निवासी राहुल देव बताते हैं कि अपनी नियमित दिनचर्या में भगवान को याद करने का समय नहीं मिलता है।
हर समय हड़बड़ी रहती है। नौ दिन व्रत और खान-पान में सुधार से खुद को ही तसल्ली मिलती है कि कुछ वक्त भगवान के लिए भी निकाला है।
शारदीय नवरात्रि में दोगुनी कमाई-
 होटल मालिकों का मानना है कि जहां एक तरफ वासंतिक नवरात्रि में कमाई आधी हो जाती है वहीं शारदीय नवरात्रि में कमाई दोगुनी हो जाती है।
हजरतगंज स्थित दस्तरख्वान होटल के मैनेजर अली का कहना है कि शारदीय नवरात्रि में दुर्गा पूजा का मेला लगता है जिसमें बड़ी संख्या में बंगाली लखनऊ आते हैं। दुर्गा पूजा बंगालियों का सबसे बड़ा त्योहार है। इस त्योहार में वे काली मां पर जीवों की बली चढ़ाते हैं और बहुत प्रेम से खाते भी हैं। इसलिए उस वक्त कमाई घटने के बजाय दोगुनी हो जाती है। बंगालियों की वजह से सेल इतनी बढ़ जाती है कि वे शारदीय नवरात्रि का इंतजार करते हंै लेकिन वासंतिक नवरात्र में काम चौपट रहता है।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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