सोमवार, 3 मार्च 2014

बच्चे को ज्यादा लाड़-प्यार बना दे न कमजोर



रमन भले ही आज एक जिम्मेदार डॉक्टर है, फिर भी अपने कई कामों के लिए वह अपने माता-पिता पर निर्भर रहता है, मसलन उसके सभी बिल भरने से लेकर बैंक के काम तक वही देखते हैं। यहां तक कि वह यह भी नहीं जानता कि उसके इंश्योरेंस का प्रीमियम कब-कब जाना होता है। कमजोर
कई बार रमन के बच्चों की भी सारी जिम्मेदारी उसके माता-पिता ही देख रहे हैं। इसका कारण यही है कि उसके माता-पिता ने कभी भी उसे बड़ा बनने ही नहीं दिया और न ही जिम्मेदारी भरा काम दिया। रमन आज भी कभी शहर से बाहर होता है तो वे लोग कई बार फोन कर उसका हाल-चाल और खाने का शेड्यूल तक पूछते रहते हैं। ऐसा केवल रमन के साथ ही नहीं होता, बल्कि बहुत से पालक हैं, जो अपने बच्चों से इतना प्यार करते हैं कि उनके छोटे-बड़े काम तक स्वयं कर देते हैं, ताकि वह अपना समय इन बातों में बर्बाद न करते हुए सिर्फ अपनी पढ़ाई और करियर पर ही ध्यान दे और धीरे-धीरे ये बच्चे स्वयं इन कामों को करते हुए घबराते हैं।
बच्चा बन सकता है डरपोक एक बात का ध्यान रखें कि माता-पिता का ज्यादा लाड़-प्यार बच्चों को सदा के लिए उन पर निर्भर एवं डरपोक भी बना सकता है। जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है और इस बदलते दौर में आगे बढ़ने के लिए बच्चों का आत्मनिर्भर बनना बेहद जरूरी है। बचपन से ही अपनी हर छोटी-बड़ी बात के लिए बच्चों की अपने माता-पिता पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता जवानी में बच्चों के पंगु बनने का कारण बनती है। यहां पंगु बनने का अर्थ मां-बाप रूपी बैसाखियों पर पूर्ण निर्भरता से है। भविष्य में भी यदि यह निर्भरता ऐसी ही बनी रहे तो बच्चा अपने बूते पर कभी भी कुछ नहीं कर सकेगा।
तकलीफ का सामना करना सिखाएं सभी माता-पिता अपने बच्चों को तकलीफ से बचाना चाहते हैं, परंतु किसी तकलीफ से पहले ही यदि आपने उस पर लाड़-प्यार का मरहम लगा दिया, तो आपका बच्चा कभी जीवन की तकलीफों का सामना नहीं कर पाएगा। उसे बहादुर बनना व दुख के थपेड़ों में स्वयं को संभालना आप ही को सिखाना होगा। इसलिए उसे अपनी छोटी- बड़ी समस्याओं को स्वयं सुलझने दें तथा जीवन के कुछ जरूरी काम उसे स्वयं करने दें, तभी वह व्यावहारिक बन पाएगा।
आज बहुत से छोटे बच्चे टी.वी. सीरियल, रिएलिटी शो और खेल प्रतियोगिताओं आदि में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। वहीं इनसे अलग कुछ बच्चे ऐसे भी हैं, जो प्रतिभावान होते हुए भी अपनी प्रतिभा का गला घोंट कर जीवन को एक निश्चित र्ढे पर ही जी रहे हैं।
इसमें बच्चों की गलती नहीं है बल्कि उनके पेरैंट्स की गलती है, जो अपने बच्चों को बाहर भेजने से डरते हैं।
करें मंच प्रदान कहते हैं कि बचपन का सुनहरा वक्त दोबारा लौटकर नहीं आता। यदि आप सही वक्त पर अपने बच्चों की प्रतिभा को सही मंच प्रदान करते हैं, तो वह जीवन में बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं, अन्यथा आप उन्हें जीवन भर के लिए गुमनामी के अंधेरों में गुम कर सकते हैं। सही वक्त पर उन्होंने अपना हुनर दिखा दिया तो उन्हें जीवन भर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ेगा।
बनाएं जिम्मेदार यह माता-पिता का दायित्व है कि वे बच्चों को उनकी क्षमता के अनुसार कार्य सौंप कर उन्हें जिम्मेदार बनाएं तथा उनकी प्रतिभा को परखें।
उन्हें कुछ कर दिखाने के लिए प्रोत्साहित करें।
जब वह जीवन में ठोकर खाएगा, तो वह कभी अपनी गलती को दोहराएगा नहीं। आप एक बार अपने नन्हे को बिना सहारे के चलने का मौका तो दें, फिर देखें उसके कदम ऊंचाइयां छू लेंगे। याद रखें आपकी लाड़-प्यार रूपी बैसाखियां उसे आत्मनिर्भर बनाने की अपेक्षा हमेशा आप पर निर्भर ही बना देंगी। इसलिए उसकी कमजोरी न बनकर उसकी ताकत बनें और उन्हें हर परिस्थिति में आगे बढ़ने का हौसला दें।
न जकड़ें बेड़ियों में बच्चों को नियंत्रण में रखना जरूरी है, परंतु उन्हें इतनी बेड़ियों में भी जकड़ कर न रखें कि वे बाहर की दुनिया से अनभिज्ञ हो जाएं तथा अपने ही घर की चारदीवारी में दुबककर संकुचित सोच और सीमित दायरे में अपना जीवन उलझ लें।
अक्सर देखने में आता है कि माता-पिता बेटों को तो बाहर भेज देते हैं लेकिन बेटियों को बाहर भेजने में हिचकिचाते हैं। ये सही नहीं है। बेटे और बेटियों में फर्क न करें और उन पर समान भरोसा करें।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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