बुधवार, 12 मार्च 2014

शिक्षक का दोस्त होना जरूरी है!



गुरु एक कुम्हार की तरह बाहर से भले ही कितनी चोटें दे, पर भीतर से वह अपने छात्र को सहारा देते हुए सही आकृति में ढालता चला जाता है। इस तुलना को आज समाज ने नकारना शुरू कर दिया है कि कुम्हार की भांति क्यों, किसी पेंटर की तरह कैनवास पर ब्रश चलाते हुए भी तो उसमें जीवन के कुछ खास रंग भरते हुए छात्र को नया रूप दे सकता है एक शिक्षक। इसलिए बच्चों की भलाई के बारे में सोचते हुए शिक्षकों द्वारा पिटाई की घटनाओं पर अंकुश लगाने को माता-पिता और समाज तक ने आवाज उठानी शुरू कर दी है।

शिक्षक करे दोस्ताना व्यवहार
बदलते वक्त के साथ शिक्षक व छात्र के रिश्तों में भी बदलाव आ रहा है। आत्मीयता व मित्रता का समावेश होने से यह रिश्ता और भी गहरा बनता जा रहा है। कभी हमारे देश में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली लागू थी, जिसमें बच्चों को कठोर अनुशासन में रखा जाता था। उस वक्त उनके लिए गुरु एक ऐसी कठोर शख्सियत था, जो किताबी ज्ञान देते हुए उसे न सिर्फ अनुशासन का पाठ ही पढ़ाता था बल्कि बच्चे उसके क्रोध से डरे और सहमे हुए भी रहते थे। अब परिवेश बदल चुका है। आज शिक्षक बच्चों के दोस्त बन रहे हैं, जिनसे वे बेङिाझक न केवल अपनी समस्याओं का हल पूछते हैं बल्कि उनसे अपने दिल की बातें भी बता देते हैं।

जीवन की दिशा दिखाते
गुरु बच्चे जीवन का पहला सबक व भाषा तो माता िपता से सीखते हैं, पर उन्हें जीवन की दिशा दिखाने वाले शिक्षक होते हैं। स्कूल से आरंभ हुआ उनका यह ज्ञान अजर्न ताउम्र उनके साथ रहता है।
पर कई शिक्षक उस पुरानी सोच से अपना पीछा नहीं छुड़ा पा रहे कि शिक्षक को कठोर ही होना चाहिए, नहीं तो बच्चे अपने डरेंगे ही नहीं।
यदि शिक्षक कठोर होगा तो वह कभी बच्चों से दोस्ताना संबंध कायम नहीं कर पाएगा, न ही उन्हें समझ पाएगा। जरूरी है कि बच्चों को समझने के लिए शिक्षक भी उनके साथ पढ़ाते हुए बच्चा बन जाए। क्योंकि बच्चों को प्यार से सिखाया जा सकता है।

तारे जमीं पर
फिल्म तारे जमीं परकी कहानी में एक शिक्षक और छात्र के बारे में बताया गया है। इस फिल्म की कहानी असल जिंदगी के ऐसे कई बच्चों की कहानी थी, जो पढ़ाई में कमजोर होते हैं और अपने मां-बाप व शिक्षक की डांट-फटकार से तंग आकर स्वयं को उपेक्षित महसूस करते हैं। ऐसे हालात में कई बार वे कोई गलत कदम भी उठा लेते हैं।
जब एक ही मां-बाप के दो बच्चों की आदतों, सोच एवं कार्य शैली में बहुत अंतर होता है तो फिर एक ही कक्षा में पढऩे वाले हर बच्चे की समझने की क्षमता में अंतर होना तो स्वाभाविक ही है। शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चे की कमजोरी को समझ कर उसे दूर करने का प्रयास करे न कि सबके सामने बच्चों की कमियों का मजाक उड़ाए।

हर बच्चा है खास
हर बच्चे में कोई न कोई खूबी होती है, जरूरत है तो बस उस खूबी को तराश कर उससे बच्चे को अलग पहचान देने की और यह काम तो एक बेहतर शिक्षक ही कर सकता है। कक्षा में सभी बच्चे एक साथ बैठ कर उससे सीखते हैं तो उनमें से कोई शिक्षक का चहेता और दूसरा उपेक्षित रह जाता है।कहते हैं कि शिक्षक बिना भेदभाव के अपने शिष्यों को ज्ञान देता है, फिर भी इस प्रकार के भेदभाव से वह बच नहीं पाता और भूल जाता है कि उसका तो काम ही बच्चों की विशेषता को पहचान कर उसे सही आकार देना है।

शिक्षक जो बन जाए साथी
मात्र फिल्म तारे जमीं परका ही उदाहरण नहीं बल्कि आरंभ से ही इस विषय पर फिल्में बनती आई हैं कि शिक्षकों ने अपने छात्रों से दोस्ताना संबंध कायम किए हैं। आज जिस तरह से बच्चों पर पढ़ाई और पाठ्यक्रम का बोझ बढ़ता जा रहा है, उसमें बच्चों को एक कठोर शिक्षक से ज्यादा अपने साथ मौज-मस्ती करने वाले ऐसे शिक्षक की जरूरत है, जो उनके साथ किसी साथी की तरह हर प्रकार की गतिविधि में भाग ले सके। इससे ही बच्चों का विकास संभव है।

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Source – KalpatruExpress News Papper

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