बुधवार, 9 अप्रैल 2014

जो कुछ मुङो दिया लौटा रहा हूं मैं..



साहिर लुधियानवी - जन्म: 8 मार्च, 1921
शैलेन्द्र चौहान साहिर ने जब लिखना शुरू किया तब इकबाल, फैज, फिराक आदि शायर अपनी
 बुलंदी पर थे, पर उन्होंने अपना जो विशेष लहजा और रुख अपनाया, उससे न सिर्फ उन्होंने 
अपनी अलग जगह बना ली बल्कि वे शायरी की दुनिया पर छा गये। साहिर ने लिखा - दुञ्चिाङ्गा
 के ा ुरबा ाश्र्-हवादि ा की शक्ल ङ्को र्श् कुछ ङ्काु ो दिङ्गा हह्य, ल टा रहा हूँ ङ्काह्य 
1943 में तल्खियांनाम से उनकी पहली शायरी की किताब प्रकाशित हुई। तल्खियांसे साहिर को 
एक नई पहचान मिली। इसके बाद साहिर अदब़-ए-लतीफ’, ‘शाहकारऔर सवेराके संपादक बने।
 साहिर प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन से जुड़े थे। सवेरामें छपे कुछ लेख से पाकिस्तान सरकार 
नाराज हो गई और साहिर के खिलाफ वारंट जारी कर दिया दिया। 1949 में साहिर दिल्ली चले 
आए। कुछ दिन दिल्ली में बिताने के बाद साहिर मुंबई में आ बसे।
1948 में फिल्म आजादी की राह पर से फिल्मों में उन्होंने कार्य करना प्रारम्भ किया। यह फिल्म 
 असफल रही।
साहिर को 1951 में आई फिल्म नौजवानके गीत ठंडी हवाएं लहरा के आए ..से प्रसिद्धि मिली।
 इस फिल्म के संगीतकार एस डी बर्मन थे। गुरुदत्त के निर्देशन में बनी पहली फिल्म बाजीने 
उन्हें प्रतिष्ठा दिलाई। इस फिल्म में भी संगीत बर्मन दा का ही था, इस फिल्म के सभी गीत 
मशहूर हुए।
साहिर ने सबसे अधिक काम संगीतकार एन दत्ता के साथ किया। दत्ता साहब, साहिर के 
जबरदस्त प्रशंसक थे। 1955 में आई मिलाप के बाद मेरिन ड्राइव, लाईट हाउस, भाई बहन, साधना,
धूल का फूल, धरम पुत्र और दिल्ली का दादा जैसी फिल्मों में गीत लिखे।
गीतकार के रूप में उनकी पहली फिल्म थी बाजी, जिसका गीत तकदीर से बिगड़ी हुई तदबीर बना 
ले..बेहद लोकप्रिय हुआ। उन्होंने हमराज, व़क्त, धूल का फूल, दाग, बहू बेगम, आदमी और इंसानधुंध,
प्यासा
सहित अनेक फिल्मों में यादगार गीत लिखे। सन1939 में जब वे गवर्नमेंट कॉलेज लुधियाना में 
 विद्यार्थी थे तब अमृता प्रीतम से उनका प्रेम हुआ जो कि असफल रहा।
कॉलेज के दिनों में ही वे अपने शेर ओ शायरी के लिए प्रख्यात हो गए थे और अमृता इनकी 
प्रशंसक थीं। अमृता के परिवार वालों को आपत्ति थी, क्योंकि साहिर मुस्लिम थे।
बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। साहिर ने शादी नहीं की
पर प्यार के एहसास को उन्होंने अपने नगमों में कुछ इस तरह पेश किया कि लोग झूम उठते। 
साहिर की लोकप्रियता काफी थी और वे अपने गीत के लिए लता मंगेशकर को मिलने वाले 
पारिश्रमिक से एक रुपया अधिक लेते थे। इसके साथ ही ऑल इंडिया रेडियो पर होने वाली 
घोषणाओं में गीतकारों का नाम भी दिए जाने की मांग साहिर ने की, जिसे पूरा किया गया। इससे 
पहले किसी गाने की सफलता का पूरा श्रेय संगीतकार और गायक को ही मिलता था।
हिन्दी फिल्मों के लिए लिखे उनके गानों में भी उनका व्यक्तित्व झलकता है। उनके गीतों में 
संजीदगी कुछ इस कदर झलकती है जैसे ये उनके जीवन से जुड़ी हो। उनका नाम जीवन के 
विषाद, प्रेम में आत्मिकता की जगह भौतिकता तथा सियासी खेलों की वहशत के गीतकार और 
शायरों में शुमार है।
साहिर वे पहले गीतकार थे जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी। निराशा, दर्द, विसंगतियों
 और तल्खियों के बीच प्रेम, समर्पण, रूमानियत से भरी शायरी करने वाले साहिर लुधियानवी के 
लिखे नगमे दिल को छू जाते हैं। आज कोई 60 वर्षों के बाद भी उनके गीत उतने ही ताजा लगते 
हैं, जितने कि जब लिखे गए थे।
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करनाचाहते हैं
 तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है:facingverity@gmail.com.पसंद आने पर हम उसे 
आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!
Source – KalpatruExpress News Papper









कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें