बुधवार, 9 अप्रैल 2014

कविता



मनोज पांडेय
नरेन्द्र दाभोलकर के लिए 
न तो अपनी मन्नत-मनौती से
न बद्दुआओं से
न वशीकरण से
न मारन-उच्चाटन से
न मूठकरनी से
न अपने तमाम छल-प्रपंचों से और हां ..
न अपने शापùùùù..से
वहशियो तुम नहीं मार पाए
आखिर मर कर भी
वही जीता उसकी बात साबित हुई
गोली दिल में लगे तो जान जाती है
बिकाऊ समय 
खरीद लो
या
बिक जाओ
यही दो अनिवार्य शतेर्ं है.
इस बिकाऊ हो चुके समय की
घर की रद्दी से लेकर घर की कोख तक की कीमत लग जा रही है !!!!!!
आप चाहें तो
अपने
गुर्दे,लीवर,खून,रेटिना,चमड़ी
सबको बिकने के लिए सजा सकते हैं
यहां तक कि दिमाग भी, कई बार
अच्छी कीमत दे जाता है
जिस समय में
हर चीज कोई न कोई
कीमत दे जा रही है
उस महान बिकाऊ समय में
आपकी हैसियत
और अहमियत !
आपके बिकाऊ मूल्य पर
तय हो रही है
क्या खराबी है ?
(यह पक्की दुनियादारी है)
आपके हाथ भी तो
अपनी कीमत लग जा रही है
जो जीते जी ही नहीं
मरते दम तक नहीं
बिके ùùù
उनको भी यह महान बिकाऊ समय
चप्पल-बंडी पर छाप बेच रहा है
चे और गांधी की हालत
छुपी नहीं है किसी से
इतना ही नहीं
यह महान बिकाऊ समय
इस कोशिश में तो लगा ही है कि
बिक जाएगी यह पृथ्वी भी
किसी न किसी दिन
किसी ब्लैक-होल के हाथों
गनीमत है
सिरजने वाले अभी भी
सिरज रहे है
प्रेम
मुस्कान
शब्द
और धरती।
भगवान के घर बेटी पैदा नहीं होती 
तुम
ये तो मानोगे
अपनी इच्छा से ही लिया
हर बार..अवतार तुम्हारी इच्छा के आगे
किसी और की क्या बिसात?
खैर
अपने अवतार-रूप में
तुमने लीला की;
रास-लीला की
कई बार;
कई-कई किये विवाह
बच्चे भी तुम्हारी इच्छा से पैदा हुए होंगे
जाहिर है
है ना भगवन!
इन बच्चों में कोई बेटी क्यों ना हुई
हे सर्वज्ञ
पहले ही पहचान जाते थे
कन्या-भ्रूण
या रोपित नहीं करते थे
जरूरी गुणसूत्र
जानबूझ कर
क्या हुआ भगवन?
चुप क्यों हो गये?
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Source – KalpatruExpress News Papper





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