शनिवार, 26 अप्रैल 2014

भिंडी की वैज्ञानिक खेती



सब्जियों की खेती में थोड़ा परिश्रम अधिक लगता है लेकिन इनकी वैज्ञानिक तरीके से खेती अच्छा मुनाफा दे सकती है।
इसकी खेती पूरे भारत में लगभग की जाती है। इसमें विटामिन ए, बी, सी बहुत ही प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा यह प्रोटीन और खनिज लवणों का एक अच्छा स्नेत है।
इसकी मांग हर-एक घर के अलावा पांच सितारा होटलों तक होती है।
भिन्डी की खेती हर प्रकार की उपजाऊ भूमि में की जा सकती है, लेकिन इसके लिए सर्वोतम बलुई दोमट और दोमट मिट्टी होती है। इसके लिए 18 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान बुवाई के समय अति आवश्यक है और 42 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर इसकी फालियां गिरने लगती हैं।
उन्नत किस्में-
 पूसा मखमली, परभनी क्रांति, पूसा सावनी, पंजाब पद्मिनी, पंजाब-7, वैशाली वधू, अर्का अनामिका, अर्का अभय, वर्षा उपहार, हिसार बरसाती, आजाद भिण्डी-1 और 2, गुजरात भिण्डी-1, हिसार उन्नत, सलेक्श जी-2, तमिलनाडु हाइब्रिड -8, पंजाब-8, आईआई और आर-8, पूसा ए-4, हरभजन और रेड भिण्डी उन्नत किस्में हैं।
बीज दर व उर्वरक प्रबन्धन-
 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर के हिसाब से इसकी बीज दर लगती है। इसकी बुवाई के लिए जुलाई का दूसरा पखवारा सर्वोत्तम रहता है लेकिन अगेती फसल को मार्च के पहले हफ्ते से ही लगाना शुरू कर दिया जाता है। इसकी बुवाई लाइनों में की जाती है। लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर एवं पौध से पौध की दूरी 30 रखनी चाहिए।
जब हम खेत तैयार करते हैं उस समय 200-250 कुन्तल प्रति हेक्टअर के हिसाब से कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद आखिरी जुताई में मिला देनी चाहिए। खेत बुवाई करते समय नाइट्रोजन इससे पूरा नहीं होता है तो नाइट्रोजन तत्व के रूप में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश की आवश्कता पड़ती है। इसे आखिरी जुताई मे बुवाई से पहले आधी नाइट्रोजन की मात्रा खेत में जुताई करते समय दे देनी चाहिए। फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा आखिरी जुताई में प्रयोग करते हैं।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण-
 बरसाती सीजन की फसल में पानी लगाने की आवश्यकता नहीं होती लेकिन गर्मियों की फसल में फलों की तुड़ाई के बाद खेत में खुश्की आते ही पानी लगाते रहना चाहिए। इसमें कम से कम 2 से 3 निराई गुड़ाई करनी चाहिए लेकिन खरपतवार नियंत्रण हेतु वुवाई से पूर्व वासालिन 48 ईसी 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टअर की दर से प्रयोग करनी चाहिए ।
रोग नियंत्रण-
 इसमें येलोवेन मोजेक जिसे पीला रोग कहते हैं सबसे ज्यादा लगता है। यह रोग वाइरस के द्वारा या विषाणु के द्वारा फैलता है। इसके चलते फल पत्तियां और पेड़ पीला पड़ जाता है। इसके नियंत्रण हेतु रोग रहित प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए या मेलाथियान 50 ईसी दवा की उपयुक्त मात्रा को पर्याप्त पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
भिन्डी की फसल में तना बेधक और फल बेधक दोनों तरह के कीट लगते हंै। इसके बचाव के लिए हम काबरेसल्फान 25 ई़ सी़ 15 लीटर 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टर के हिसाब से हर 10 से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करते रहना चाहिए, लेकिन यह ध्यान रखें कि छिड़काव फलों की तुड़ाई के बाद करना चाहिए।
उत्पादन-
 इस समय लगाई जाने वाली फसल से 80 -90 कुंतल प्रति हेक्टेअर उपज मिलती है। बरसात के सीजन में यह उत्पादन बढ़ कर 150 कुंतल तक पहुंच जाता है।
फसल लगाने के 50-60 दिन बाद से फलों की तुड़ाई शुरू हो जाती है।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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