रविवार, 25 मई 2014

किसके प्रयोग से कद्दू वर्गीय फसलो के उत्पादन में वृद्धि




देश की विभिन्न मृदाओं और फसलो में बोरॉन की कमी देखी जा रही है, जिससे फसलौत्पदन सीमित हो रहा है।
पत्तियों पर बोरॉन के प्रयोग से कद्दू वर्गीय फसलो में बेल  के विकास, लो के आकार, संख्या और फसल में वृद्धि होती है। ऐसा पाया गया कि जिन बेलो पर बोरिक अम्ल  का छिड़काव किया गया था उनमें फलो  की वृद्धि 10.5 प्रति बेल  से 12.2 हो गई। साथ ही, लो का औसत भार भी 368 ग्राम से बढ़कर 412 ग्राम हो गया। जिस क्षेत्र में बोरिक अम्ल का छिड़काव नहीं किया गया था, उसकी उपज 48.6 टन प्रति हेक्टेयर के मुकाबलो  छिड़काव किए गए क्षे} में फसल  उत्पादन बढ़कर 62.5 टन प्रति हेक्टेयर हो गया।
उत्पादन में हुई इस बढ़ोत्तरी का कारण बेहतर स्वास्थ्य वाे पराग द्वारा फों की संख्या में वृद्धि है। कद्दू की बेमें बोरॉन की सही मा}ा के कारण निषेचन के बाद पराग निका का सही विकास होता है जिससे अण्डाशय में निषेचन में वृद्धि होती है और अन्तिम रूप से प्रत्येक बेमें फों की संख्या में वृद्धि होती है और अण्डाशय में प्रत्येक निषेचित अण्डा वृद्धि हार्मोन मुक्त करता है, जिससे फके आकार और भार में वृद्धि होती है। इन दो कारणों से किसानों को भरपूर उपज प्राप्त हुई। इस प्रयोग में घोबनाने के िए के िए बोरिक अम्के स्थान पर बोरैक्स अथवा सोल्यूबोर का भी प्रयोग किया जा सकता है। घोमें एक प्रतिशत की सान्द्रता से यूरिया मिाने पर इसका पत्तियों पर बेहतर अवशोषण होता है। यह तकनीक कम ागत वाी है और बोरॉन की कमी वाे क्षे}ों में इसे कद्दू वर्गीय फसों पर प्रयोग किया जा सकता है।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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