रविवार, 25 मई 2014

हवा के साथ-साथ, हवा के संग संग



डनड्रेट 823 मीटर ऊंचा पठार है जहां स्की रिसोर्ट है। यह गैिवेर से 10 मिनट की दूरी पर है। 
मैथियास कहते हैं, हम पहाड़ी के ऊपर से एक से डेढ़ हजार मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरने की 
सोच रहे हैं।
तापमान यहां शून्य से 25 डिग्री कम है जिस पर खुे में कदम रखते ही नाक के बातक जम 
जाते हैं, ¶गता है जैसे गोंद से चिपक गए हों। उत्तरी ध्रुव के करीब स्वीडन के कस्बे गैलीवे में हर 
साल बैलून एडवेंचर का आयोजन किया जाता है। मौसम साफ हो तो गुब्बारे की उड़ान में कोई 
 परेशानी नहीं होती है।
मैनेजर मैथियास का कहना है कि यहां हालांकि सप्ताह भर के लिए इस आयोजन में लोग काफी 
 उत्साह से हिस्सा लेते हैं लेकिन फिर भी वह मौसम की रिपोर्ट को बेहद ध्यान से पढ़ते हैं 
क्योंकि गर्म हवा के गुब्बारों में उड़ान भरने के िए मौसम पर नजर रखना जरूरी है। इस सा
 फ्रांस, ¶िथुआनिया, जर्मनी एवं नीदरैंड की बैून टीमों ने इस आयोजन में हिस्सा िया। 
मैथियास कहते हैं कि गुब्बारे की उड़ान के िए जरूरी है कि बर्फ न गिरे, धुंध न हो, तेज हवाएं 
न चरही हों तथा तापमान शून्य से 30 डिग्री से अधिक ठंडा न हो। नहीं तो जोखिम बहुत बढ़ 
जाता है। अत्याधुनिक ग्ोबपोजिशनिंग सिस्टम्स (जी.पी.एस.) तथा मोबाइफोन्स के बावजूद 
ध्रुवों में गर्म हवा के गुब्बारे की उड़ाना बेहद चुनौतीपूर्ण है।
रोमांच तथा जोखिम में रुचि रखने वाों को ध्रुव पर गर्म हवा के गुब्बारे की उड़ान काफी पसंद 
है। ियोन कुसर्जेन्स एक डच बूनिस्ट हैं जो ऐसे ही ोगों में शामिहैं। मौसम का हा¶ 
जानने के बाद उन्होंने फैसा किया कि वह गैिवेर के दक्षिण-पश्चिम में डनड्रेट पहाड़ी के पीछे 
की ओर से उड़ान भरेंगे।
डनड्रेट 823 मीटर ऊंची है जहां स्की रिसोर्ट है। यह गैिवेर से 10 मिनट की दूरी पर है। 
ह कहते हैं, हम पहाड़ी के ऊपर से एक से डेढ़ हजार मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरने की सोच 
रहे हैं।
करीब दो सप्ताह तक गातार बर्फबारी होने के बाद उड़ान के िए तय स्थान के रास्ते के दोनों 
ओर पेड़ बर्फ के भार से झुक कर इसे ढक चुके हैं। वहां पहुंच कर ियोन तथा उनके सहायक 
ने गाड़ी से गुब्बारा तथा उसके साथ जोड़ी जाने वाी विशाटोकरी उतारी तथा इसके साथ एक 
बैकपैक बांध दिया।
बैकपैक में तम्बू, स्ीपिंग बैग, सूखा भोजन तथा कुक्कर रखा है ताकि यदि हवा के बहाव से 
त दिशा में गुब्बारा भटक भी जाए तो उसमें सवार ोग खुद को बचा सकें। गुब्बारे को तैयार 
करने के िए सबसे पहे उसमें प्रोपेर से ठंडी हवा भरी गई जिसके बाद हवा को प्रोपेर के 
बर्नर से निकने वाी आग की पटों से गर्म किया गया। प्रोपेर की गास्केटों को भीषण ठंड से 
बचाने के िए खास तरह की ग्रीस से पोता जाता है।
जैसे-जैसे हवा भरी गुब्बारा फूते हुए सीधा होने गा और सभी को गुब्बारे के साथ बंधी विशा
टोकरी में सवार हो जाने का निर्देश दे दिया गया। कुछ ही देर में गुब्बारा धरती से ऊपर उठ चुका 
था। फिर पेड़ों से ऊपर होते हुए यह और अधिक ऊंचाई पर पहुंच गया जहां यह हवा के बहाव के 
साथ आगे बढ़ने गा। जी.पी.एस. उपकरणों से पता चा कि यह 20 किोमीटर प्रतिघंटा की 
रफ्तार से उड़ रहा था। कुछ और ऊंचाई पर पहुंचते ही ठंड कम हो गई। एक हजार मीटर की 
ऊंचाई पर तापमान शून्य से 4 डिग्री नीचे जा चुका था। चारों ओर शांति का माहौथा। दरअस
ठंडी हवा गुब्बारे को बेहतर ढंग से उड़ाती है और गैस भी कम गती है परंतु यहां गुब्बारे को 
उतारना 10 गुणा कठिन होता है क्योंकि यदि उतरते हुए बर्फ में एक या डेढ़ मीटर धंस गए तो 
आपकी सहायता के िए शायद ही कोई पहुंच सके।
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Source – KalpatruExpress News Papper







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