रविवार, 15 जून 2014

हरी खाद: मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने का एक सस्ता विकल्प



मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने के लिए हरी खाद एक सस्ता विकल्प है। सही समय पर फलीदार पौधे की खड़ी फसल को मिट्टी में ट्रैक्टर से हल चला कर दबा देने से जो खाद बनती है, उसको हरी खाद कहते हैं।
हरी खाद बनाने के लिये अनुकूल फसलें-
 ढेंचा, लोबिया, उरद, मूंग, ग्वार, बरसीम आदि कुछ मुख्य फसलें हैं, जिनका प्रयोग हरी खाद बनाने में होता है। ढेंचा इनमें से अधिक महत्त्वपूर्ण है। ढेंचा की मुख्य किस्में सस्बेनीया ऐजिप्टिका, एस रोस्ट्रेटा तथा एस एक्वेलेटा अपने त्वरित खनिजकरण पैटर्न, उच्च नाइट्रोजन मात्रा तथा अल्प ब्रूछ अनुपात के कारण बाद में बोई गई मुख्य फसल की उत्पादकता पर उल्लेखनीय प्रभाव डालने में सक्षम हैं।
हरी खाद के पौधों को मिट्टी में मिलाने की अवस्था
हरी खाद के लिये बोई गई फसल 55 से 60 दिन बाद जोत कर मिट्टी में मिलाने के लिये तैयार हो जाती है। इस अवस्था पर पौधे की लम्बाई व हरी शुष्क सामग्री अधिकतम होती है। 55 से 60 दिन की फसल अवस्था पर तना नरम व नाजुक होता है, जो आसानी से मिट्टी में कट कर मिल जाता है।
इस अवस्था में कार्बन-नाइट्रोजन अनुपात कम होता है। पौधे रसीले व जैविक पदार्थ से भरे होते हैं। इस अवस्था पर नाइट्रोजन की मात्रा की उपलब्धता बहुत अधिक होती है। जैसे-जैसे हरी खाद के लिये लगाई गई फसल की अवस्था बढ़ती है, कार्बन-नाइट्रोजन अनुपात बढ़ जाता है, इसके साथ ही जीवाणु हरी खाद के पौधों को गलाने सड़ाने के लिये मिट्टी की नाइट्रोजन इस्तेमाल करते हैं, जिससे मिट्टी में अस्थाई रूप से नाइट्रोजन की कमी हो जाती है।
हरी खाद बनाने की विधि-
 अप्रैल-मई माह में गेहूं की कटाई के बाद जमीन की सिंचाई कर लें। खेत में खड़े पानी में 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से ढेंचा का बीज छितरा लें। जरूरत पड़ने पर 10 से 15 दिन में ढेंचा फसल की हल्की सिंचाई कर लें । 20 दिन की अवस्था पर 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया को खेत में छितराने से नोड्यूल बनने में सहायता मिलती है। 55 से 60 दिन की अवस्था में हल चला कर हरी खाद को पुन: खेत में मिला दिया जाता है। इस तरह लगभग 10.15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से हरी खाद उपलब्ध हो जाती है, जिससे लगभग 60.50 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। मिट्टी में ढेंचे के पौधो के गलने-सड़ने से बैक्टीरिया द्वारा नियत सभी नाइट्रोजन जैविक रूप में लम्बे समय के लिए कार्बन के साथ मिट्टी को वापस मिल जाते हैं।
हरी खाद के लाभ-
 हरी खाद को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की भौतिक शारीरिक स्थिति में सुधार होता है। हरी खाद से मृदा उर्वरता की भरपाई होती है। यह पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाती है। सूक्ष्म जीवाणुओं की गतिविधियों को बढ़ाती है। मिट्टी की संरचना में सुधार होने के कारण फसल की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है। हरी खाद के लिए उपयोग किये गये फलीदार पौधे वातावरण से नाइट्रोजन व्यवस्थित करके नोड्यूल्ज में जमा करते हैं, जिससे भूमि की नाइट्रोजन शक्ति बढ़ती है। हरी खाद के लिये उपयोग किये गये पौधों को जब जमीन में हल चला कर दबाया जाता है तो उनके गलने-सड़ने से नोड्यूल्ज में जमा की गई नाइट्रोजन जैविक रूप में मिट्टी में वापस आ कर उसकी उर्वरक शक्ति को बढ़ाती है।
पौधों के मिट्टी में गलने-सड़ने से मिट्टी की नमी को जल धारण की क्षमता में बढ़ोतरी होती है। हरी खाद के गलने-सड़ने से कार्बन-डाइ-ऑक्साइड गैस निकलती है, जो कि मिट्टी से आवश्यक तत्व को मुक्त करवा कर मुख्य फसल के पौधों को आसानी से उपलब्ध करवाती है। हरी खाद के बिना बोई गई धान की फसल और हरी खाद दबाने के बाद बोई गई धान की फसल में ऐकिनोक्लोआ जातियों के खरपतवार न के बराबर होते है, जो हरी खाद के ऐलेलोकेमिकल प्रभाव को दर्शाते हैं।
आदर्श हरी खाद में निम्नलिखित गुण होने चाहिए-
1-     उगाने का न्यूनतम खर्च
2-     न्यूनतम सिंचाई आवश्यकता
3-     कम से कम पादप संरक्षण
4-     कम समय में अधिक मात्रा में हरी खाद प्रदान कर सके
5-     विपरीत परिस्थितियों में भी उगने की क्षमता हो
6-     जो खरपतवारों को दबाते हुए जल्दी बढ़त प्राप्त करे
7-     जो उपलब्ध वातावरण का प्रयोग करते हुए अधिकतम उपज दे।

यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करनाचाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है:facingverity@gmail.com.पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!
Source – KalpatruExpress News Papper

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें