रविवार, 15 जून 2014

पिता: मजबूत दरख्त सा साथ



पिता अर्थात वह बड़ा छायादार वृक्ष, जिसमें बचपने की गौरेया बनाती है घोंसला..। पिता अर्थात वह उंगली, जिसे पकड़कर अपने पांव पर खड़ा होना सीखता है, घुटनों के बल चलने वाला..। पिता अर्थात वह कंधा, जिस पर बैठकर शहर की गलियों से दोस्ती करता है नन्हा मुसाफिर..। पिता अर्थात एक जोड़ी वह आंखें, जिनकी पलकों में अंकुरते हैं बच्चे को हर तरह से बड़ा करने के हजारों सपने..। पिता अर्थात वह पीठ, जो बेटे को घुड़सवारी करवाने के लिये तैयार रहती है हरदम..। पिता अर्थात वह लाठी, जो छोटे पौधे को सीधा करने के लिये खड़ी और गड़ी रहती है साथ-साथ..। पिता अर्थात हाड़-मांस की वह काया, जिसमें पलता है बच्चों का दुलार-संस्कार..। प्रस्तुत है हर पिता को समर्पित फादर्स डे का हमारा विशेषांक:
पिताशब्द सुनकर एक ऐसे व्यक्ति की छवि उभर कर आती है, जो सख्त है, खुद से दूर रखता है, फिर भी दिल के सबसे करीब होता है। कहते हैं कि पिता वह वृक्ष है जिसकी छाया तले नन्हें पौधे पलते हैं। आजकल पिता की पारम्परिक छवि बदली है।
अब पिता वह नहीं रह गए हैं, जिनके आते ही बच्चे अपनेअ पने कमरों में घुस जाते थे, उनसे बात करने में घबराते थे, बल्कि अब पिता से अच्छा दोस्त बाहर की दुनिया में मिलना मुश्किल लगता है।
पिता और बच्चों का रिश्ता निभाने की तकनीक अब पहले से काफी अलग है। उनके बीच बचपन में स्नेह का और युवावस्था में दोस्ती का रिश्ता होता है।
बुढ़ापे में रोल बदल जाता है। यानी पिता बच्चों जैसे हो जाते हैं और बच्चे पिता की अपने बच्चे जैसी परवाह समझने लगते हैं। एक और दिलचस्प-सी बात होती है। मध्यवय का होतेहो ते अक्सर व्यक्ति चाहे-अनचाहे अपने पिता की तरह होने लगता है। पिता की अच्छाइयां तो ठीक, कई बार उसमें ऐसे गुण भी परिलक्षित होने लगते हैं, जिन्हें वह अपने पिता में नापसंद करता रहा हो। उसके हाव-भाव, आदतें, शरीर की मुद्रा आदि भी जानने वालों को उसके पिता की याद दिलाने लगती है।
             एक पिता के कई रूप
समय के साथ बदलते हुए पापा-
 पिता अब अपने बच्चों के साथ ज्यादा खुलकर मिलते हैं। इस रिश्ते में अब वह ङिाझक नहीं रह गई है जो पहले हुआ करती थी। आज के बच्चे अपने पिता को हर उस वक्त अपने साथ खड़ा पाते हैं, जब उनकी हिम्मत जवाब देने लगती है।
पिता अपने बच्चों के डिसिप्लिन इंचार्ज नहीं होते। आज के वक्त में किसी भी बच्चे को अपने पापा का नाम हिटलर या इमरजेंसी रखने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि, पापा तो मस्ती के वक्त के साथी बन जाते हैं। बच्चे अपने सीक्रेट्स और शैतानियां अब अपने पापा से शेयर करने में डरते नहीं हैं। पापा उनकी शैतानी में पार्टनर बनते हैं, उनके साथ खेलते हैं, मस्ती करते हैं यानी कुल मिलाकर उन्हें पूरा इंसान बनाते हैं और खुद भी सीखते हैं। पापा की दुश्वारियां भी वक्त के साथ बढ़ी हैं।
प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, काम बढ़ गया है, लेकिन इन सब के बीच भी कभी वह बच्चों को नहीं भूलते। हां, समय देने का तरीका जरूर बदल गया है। अब पापा भी फेसबुक और वॉट्स-एप के जरिए बच्चों से जुड़े रहते हैं।
पापा और बच्चों के रिश्ते का स्वरूप जरूर बदला है, लेकिन जज्बात आज भी वही हैं।
बच्चों के हीरो पिता-
 एक शोध के मुताबिक, आज भी दुनिया भर में बच्चे सर्वप्रथम आदर्श के रूप में अपने पिता को ही देखते हैं। मां उनकी पहली पाठशाला है तो पिता पहला आदर्श। वे अपने पिता से ही सीखते हैं और उनके जैसा ही बनना चाहते हैं। इसलिये जीवन में जितना मां का महत्त्व होता है, उतना ही पिता का भी है। हम सभी को बचपन में अनुशासनप्रियता व सख्ती के चलते पिता भले क्रूर नजर आते हैं, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है और हम जीवन की कठिन डगर पर चलने की तैयारी करने हैं, हमें अनुभव होता है कि पिता की वह डांट और सख्ती हमारे भले के लिये ही थी। उनकी हर एक सीख जब हमें अपनी मंजिल की ओर बढ़ने में मदद करती है, तब हमें मालूम पड़ता है कि पिता हमारे लिए कितने खास थे, और हैं।
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Source – KalpatruExpress News Papper



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