शनिवार, 7 जून 2014

धूम्रपान की जद में स्कूली बच्चे



स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए बच्चों का शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है। प्रमुख विद्वान थॉमस फूलर कहते हैं कि एक स्वस्थ दिमाग सौ हाथों से श्रेष्ठ है। पर चिंताजनक तथ्य यह है कि स्कूली बच्चों में धूम्रपान की लत बढ़ती जा रही है। पिछले दिनों भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के एक सर्वेक्षण से खुलासा हुआ है कि कम उम्र में स्कूली बच्चे धूम्रपान की ओर आकर्षित हो रहे हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 70 फीसद छात्र और 80 फीसद छात्राएं 15 साल से कम उम्र में ही नशीले उत्पादों मसलन पान मसाला, सिगरेट, बीड़ी और खैनी का सेवन शुरू कर देते हैं।
अरविंद जयतिलक  उल्लेखनीय तथ्य यह कि धूम्रपान की जद में केवल सरकारी स्कूलों के बच्चे ही नहीं उन निजी स्कूलों के बच्चे भी हैं जहां बेहतर शिक्षा के साथ चरित्र निर्माण का दावा किया जाता है और मोटी फीस वसूली जाती है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद का यह सर्वेक्षण रेखांकित करता है कि बच्चों को नशाखोरी से दूर रखने और नैतिक बनाने में स्कूलों की भूमिका कमजोर पड़ रही है।
यह बेहद चिंतनीय है। लेकिन समझना होगा कि इस भयावह स्थिति के लिए सिर्फ स्कूल ही जिम्मेदार नहीं हैं। समाज भी बराबर का गुनहगार है। स्कूलों की परिधि से बाहर का वातारवण कम प्रदूषित नहीं है। सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान का फैलता जहर, फिल्मों के धूम्रपान वाले दृश्य, माता-पिता का धूम्रपान करना और बुरी संगत बच्चों के मन को प्रभावित कर रहा है।
पिछले दिनों प्रकाश में आयी स्वीडिश नेशनल हेल्थ एंड वेलफेयर बोर्ड और ब्लूमबर्ग फिलांथ्रोपिज की रिसर्च में बच्चों में धूम्रपान की लत की कई वजहें गिनायी गयी हैं। इनमें सबसे प्रमुख वजह सेकेंड हैंड स्मोकिंग है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चे अपने आस-पास के लोगों को धूम्रपान करते देख आकर्षित होते हैं और उनमें भी धूम्रपान की इच्छा पनपती है। जिन बच्चों के माता-पिता धूम्रपान करते हैं, उनके बच्चे धूम्रपान के प्रति शीघ्र आकर्षित होते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक सेकेंड हैंड स्मोकिंग से हर वर्ष 6 लाख से अधिक लोग मरते हैं जिनमें तकरीबन 2 लाख से अधिक बच्चे ही होते हैं। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लैंसेट की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि स्मोकिंग न करने वाले 40 फीसदी बच्चों और 30 फीसदी से अधिक महिलाओं-पुरुषों पर सेकेंड धूम्रपान का घातक प्रभाव पड़ता है। यानी अप्रत्यक्ष धूम्रपान भी बच्चों में पनपने वाली गंभीर बीमारियों के जिम्मेदार है। यानी बच्चे शीघ्र ही अस्थमा और फेफड़े का कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। कुछ वर्ष पहले वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के टुबैको फ्री इनिशिएटिव के प्रोग्रामर डॉ. एनेट ने धूम्रपान को लेकर गहरी चिंता जताते हुए कहा था कि अगर बच्चों को इस बुरी लत से दूर नहीं रखा गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि बच्चों में धूम्रपान की कुप्रवृत्ति अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में सर्वाधिक है। इसका मूल कारण अशिक्षा, गरीबी और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। मौजू सवाल यह है कि बच्चों को इस बुरी लत से कैसे दूर रखा जाए और किस तरह उन्हें स्वास्थ्य के प्रति सचेत किया जाए। आज देश के 50 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और अगर उनमें नशाखोरी की प्रवृत्ति बढ़ती है तो यह उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए घातक होगा। उचित होगा कि सरकार, समाज, स्कूल और स्वयंसेवी संस्थाएं इस बुराई को समाप्त करने के लिए रोडमैप तैयार कर मिल-जुलकर काम करें।
वैसे सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए हैं। कानून में अर्थदंड के प्रावधान भी हैं। लेकिन इसके बावजूद भी इस पर रोक लगती दिख नहीं रही है। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, अस्पतालों एवं अन्य सार्वजनिक स्थलों पर लोगों को धूम्रपान करते देखा जा सकता है। यह स्थिति इसलिए बनी हुई है क्योंकि कानून का समुचित रूप से पालन नहीं हो रहा है। उचित होगा कि धूम्रपान के खिलाफ कड़े कानून का क्रियान्वयन हो। लेकिन यह भी समझना होगा कि सिर्फ कानून बनाकर धूम्रपान पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। इसके लिए सामाजिक जागरूकता ज्यादा जरूरी है। बच्चों को धूम्रपान से दूर रखने के लिए इससे उत्पन्न होने वाली खतरनाक बीमारियों से उन्हें सुपरिचित कराना होगा तथा उन्हें यह भी समझना होगा कि धूम्रपान एक सामाजिक बुराई है। जब तक बच्चों में लोकलाज एवं मर्यादा का खयाल नहीं आएगा तब तक वे इस बुराई का परित्याग नहीं करेंगे। इसके लिए समाज एवं स्वयंसेवी संस्थाओं को आगे बढ़कर जागरूकता का कार्यक्रम चलाना होगा। इस दिशा में स्कूल महती भूमिका निभा सकते हैं। इसलिए कि स्कूलों में होने वाली सांस्कृतिक गतिविधियां एवं खेलकूद बच्चों के बालमन पर सकारात्मक असर डालती हैं। इन गतिविधियों के सहारे बच्चों में नैतिक संस्कार विकसित किए जा सकते हैं।
पहले स्कूली पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा अनिवार्य होती थी। गुरुजन बच्चों को आदर्श व प्रेरणादायक किस्सेकहा िनयों के माध्यम से उन्हें सामाजिक-राष्ट्रीय सरोकारों से जोड़ते थे। धूम्रपान के खतरनाक प्रभावों को रेखांकित कर इससे दूर रहने की शिक्षा देते थे। लेकिन विगत कुछ समय से स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रमों से नैतिक शिक्षा गायब है। शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा देने तक सिमटकर रह गया है। जबकि बच्चों को सभ्य, सुसंस्कृत और संवेदनशील बनाना स्कूलों की शीर्ष प्राथमिकता में होना चाहिए। लेकिन स्थिति उलट है।
शिक्षा का मंदिर जहां बच्चों का चरित्र गढ़ा-बुना जाता है और उनके उदात्त भावनाओं को पंख लगाया जाता है वह खुद चरित्र के संकट से जूझ रहे हैं। जिन शिक्षा मंदिरों से ज्ञान की गंगा प्रवाहित होनी चाहिए वहां बच्चों के शारीरिक व मानसिक शोषण की व्यथाएं चीत्कार मार रही हैं। कुछ घटनाएं तो दिल को दहला देने वाली हैं।
पिछले दिनों सुनने में आया कि मथुरा में एक शिक्षक अपनी शिष्या को डरा धमका कर कई दिनों तक उसके साथ दुराचार करता रहा। तो वहीं उड़ीसा के भुवनेश्वर में गुरु कहे जाने वाले एक हैवान को दस साल की एक स्कूली बच्ची के साथ ज्यादती करते पकड़ा गया। देश व समाज को शर्मसार करने वाली इस तरह की अनेक घटनाएं हैं जो स्कूलों की भूमिका पर सवाल खड़ा करती हैं। माहौल कितना दूषित हो गया है इसी से समझ जा सकता है कि कुछ वर्ष पहले दिल्ली के एक बड़े कॉलेज में एक दर्जन से अधिक छात्राएं खुलेआम शराब पीती पकड़ी गयीं। पिछले दिनों महिला और बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया कि हर चौथा स्कूली बच्चा यौन शोषण का शिकार है। तमाम शोधों से यह भी उद्घाटित हुआ है कि शिक्षकों में धूम्रपान की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यह स्थिति चिंताजनक है। जब शिक्षक ही धूम्रपान करेंगे तो बच्चों पर उसका नकारात्मक असर पड़ना तय है। आज जरूरत इस बात की है कि सरकार सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार करे और स्कूल भी नैतिक शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाएं। बच्चे राष्ट्र के निर्माता व समाज की थाती हैं। कल राष्ट्र व समाज का उत्तरदायित्व उनके कंधे पर होगा। राज्य व समाज का कर्तव्य बनता है कि वह उनकी शिक्षा के अलावा स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर संवेदनशील हो। उनके समग्र उत्थान के लिए अनुकूल वातारण निर्मित करे।
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Source – KalpatruExpress News Papper







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