रविवार, 15 जून 2014

आसानी से उगाएं स्वस्थ एवं खरपतवार रहित नवपौध



स्वस्थ एवं खरपतवार रहित नवपौध प्राप्त करने के लिये एक नई विधि; जिसमें पुरानी बोरियों को इस्तेमाल किया गया, में कम मजदूरों की संख्या, खरपतवार की समस्या का हल तथा मौजूदा पद्धति द्वारा तैयार की गई नवपौध से कम खर्च वाला पाया गया। इस पद्धति से प्राप्त नवपौध को आसानी से एसआरआई, जिसमें 12-14 दिन की नवपौध का इस्तेमाल होता है तथा मौजूदा पौधरोपण, जिसमें 20-25 दिन की नवपौध के लिये उपयुक्त पाया गया है।
नवपौध के लिये खेत व क्यारी की तैयारी-
 मई माह में गेहूं कटाई और जमीन की सिंचाई के बाद खेत में खड़े पानी में पांच किलोग्राम की दर से ढेंचा बीजों को छितराया जाता है। 50-60 दिनों के उपरान्त जमीन में हल चला कर ढेंचा पौधों को हरी खाद के रूप में मिला दिया जाता है। धान की पौध रोपण से एक महीना पहले नवपौध के लिये खेत की तैयारी की जाती है। नर्सरी क्षेत्र में बतर आने के बाद उसे 3 से 4 बार हल से जुताई करें व पाटा लगायें।
बेहतर जुताई व समान सतह के लिये कल्टीवेटर के बाद पाटा लगायें। जहां कोनों में हल न पहुंचता हो, खेत के उन कोनों की मिट्टी फावड़े से भुरभुरी कर लें। इस हरी खाद से पोषक पदार्थ उपलब्धता और मृदा उर्वरा स्तर में सुधार आता है। हरी खाद को मिट्टी में अच्छी तरह गलने-सड़ने के लिये 3-4 बार ट्रैक्टर से जुताई कर के छोड़ दिया जाता है ।
नर्सरी क्यारियों की तैयारी-
 एक हेक्टेयर खेत पौधरोपण के लिये 250 वर्ग मीटर नर्सरी एरिया काफी है। नर्सरी एरिया बीज बुआई के लिये कुल एरिया नालियों के साथ 500 वर्ग मीटर, नालियों के बिना 250 वर्ग मीटर, क्यारियों की संख्या 20, क्यारी की लम्बाई-चौड़ाई 20-0.6 मी, दो क्यारियों के बीच की दूरी 60 सेमी, सिंचाई के लिये जूट बोरी का साइज 0.6 एक क्यारी में जूट बोरी के टुकड़ों की संख्या 10, बीज की मात्रा प्रति क्यारी 600 ग्रा (12.5 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर की दर से) होनी चाहिये।
खाद प्रति क्यारी-
 गोबर की कुल खाद 8 किलोग्राम प्रति क्यारी, 3 किलोग्राम जूट बोरी टुकड़ों के ऊपर, 5 किलोग्राम जूट बोरी टुकड़ों के नीचे, एनपीके 200 ग्राम प्रति क्यारी, जिंक 225 ग्राम प्रति क्यारी।
बीज का उपचार-
 प्रति हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिये 12.5 किलोग्राम धान के बीज को 20 लीटर पानी के घोल में 12 घंटे के लिये भिगो दें। बीजों का फालतू पानी निकालकर नमी वाले जूट बैग में अंकुरित होने के लिये रख दें।
बैग में नमी का स्तर बना रहना चाहिये।
बुआई और उसके बाद देखभाल-
 नर्सरी क्यारियां 0.6 मी चौड़ी व 20 मीटर लम्बी व 4-5 इंच ऊंची तैयार करें। नर्सरी क्यारियों पर गोबर की गली सड़ी खाद 5 किलोग्राम जिंक, 25 ग्राम व एनपीके 200 ग्राम प्रति क्यारी के हिसाब से बिखेर दें । जूट बोरों के टुकड़ों को 4 से 5 घंटे पानी में भिगो लें। भीगे हुए जूट के टुकड़ों को नर्सरी क्यारियों पर बिछा लें। जूट बोरों के टुकड़ों पर अंकुरित धान के बीजों को समान रूप से फैला दें। इन बीजों के ऊपर पिसी हुई गोबर की खाद से पतला-पतला ढक लें।
जब तक नवपौध हरी न हो जाये, पक्षियों से होने वाले नुकसान को रोकने के लिये विशेष सावधानी बरतें। नवपौध अपनी जड़ों को जूट बोरों को पैंदते हुए नीचे डाली गोबर की खाद से अपना खाना आसानी से प्राप्त कर लेगी। जूट के बोरों पर बोई धान की नर्सरी पर खरपतवारों का प्रकोप न के बराबर होता है क्योंकि खरपतवारों के लिए जूट के बोरों को लांघ कर आना संभव नहीं है। इस विधि द्वारा नवपौध 15 दिन की आयु में रोपण के लिए तैयार हो जाती हैं।
लाभ-
 जूट के बोरे खरपतवारों के लिए बाधा सिद्ध होते हैं और उन्हें अंकुरित नहीं होने देते। जड़ें जूट के गीले बोरों के माध्यम से प्रवेश कर जाती हैं तथा निरंतर बोरों के नीचे मौजूद पोषक तत्व लेती रहती हैं। जूट के बोरों के चारों तरफ से हवा भी बेहतर ढंग से प्रवेश करती है, जिससे पौध की बढ़वार तीव्र गति से होती है। परंपरागत नर्सरी की तुलना में पौध उखाड़ने का समय भी आधा रह जाता है।
इससे श्रमिकों की कम आवश्यकता होती है।
इस विधि में पौधों की जड़ों से मिट्टी नहीं चिपकी होती है। इसलिए एक-एक पौधे को अलग करना सरल होता है। जूट के बोरों से पौध आसानी से व सावधानीपूर्वक उखाड़ी जा सकती है, जिससे उसे तथा उसकी जड़ों को कोई यांत्रिक क्षति नहीं पहुंचती है और इस प्रकार बैकेनी रोग के प्रकोप का जोखिम कम हो जाता है। स्वेच्छा से बढ़ने वाले पौधों की समस्या इस विधि से सफलतापूर्वक सुलझई जा सकती है क्योंकि जूट के बोरों की पर्त बीजों के अंकुरण को बाहर नहीं आने देती और खाली स्थानों पर स्वेच्छा से उगने वाले पौधे बहुत आसानी से हाथ से हटाए जा सकते हैं।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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