शनिवार, 7 जून 2014

आशिकी का वो जमाना



मास्टरपीसेज ऑफ उर्दू गजल्सकिताब के लेखक केसी कांडा अपनी किताब में हसरत मोहानी की शायरी के विषय में रोचक टिप्पणी करते हैं। उन्होंने लिखा है, ‘हसरत के कथन में बेबाकी है, चाहे वह राजनीति की बात करें या प्रेम की। हसरत ने अपनी गजलों में एक ऐसी नायिका की तस्वीर खड़ी की, जिसके जज्बात किसी आम लड़की के सपनों को व्यक्त करते हैं। उनकी कविताएं आम परिस्थितियों में उभरती हुई बोलचाल की भाषा में अपना सफर तय करती हैं, इसलिए उनकी गजलों में फारसी शब्दों का हुजूम नहीं है।उनकी गजलें काफी लोकप्रिय रही हैं जिनमें चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है., ‘कैसे छिपाऊं राजे दिल.शामिल हैं। वर्ष 1875 में लखनऊ के कस्बे मोहान में जन्मे हसरत अलीगढ़ विश्वविद्यालय से पढ़ाई के दौरान शायरी में भी दिलचस्पी रखते थे। बाद में वह राजनीति में सक्रिय हुए। राजनीति पर बेबाक लेखन के कारण वह जेल भी गए। अपने अदांज-ए-बयां के चलते लोगों के दिलों पर राज करने वाले हसरत मोहानी का निधन 13 मई 1951 को हुआ ।
लखनऊ के रकाबगंज क्षेत्र में बाग मौलवी अनवार साहब में अपने पीर के साथ वह भी दफन हैं। उनकी कब्र आज जजर्र स्थिति में है। टूटी-फूटी, सूखे झड़े पत्ताें और मिट्टी से ढकी यह कब्र उपेक्षित है। वहां के मैनेजर मो. मतीन भी इन टूटी-फू टी कब्रों में कोई दिलचस्पी नहीं रखते। मोहानी की कब्र की मरम्मत करवाना तो दूर, लगता है सालों से सफाई भी नहीं हुई।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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