शनिवार, 7 जून 2014

कश्तिए उम्र मेरी देखिए किस घाट लगे.



गिला लिखूं मैं अगर तेरी बेवफाई का, लहू में गर्क सफीना हो, आशनाई का..। सावन के बादलों की तरह से भरे हुए, ये वो नयन हैं जिनसे कि जंगल हरे हुए.. जैसे शेरों और कसीदों से लोगों को मोहित करने वाले मिर्जा मुहम्मद रफी सौदाके जीवन का बड़ा हिस्सा हालांकि दिल्ली में गुजरा लेकिन, वे अपने जीवन के उत्तरार्ध में लखनऊ आए और फिर यहीं के होकर रह गए। सौदा का जन्म 1713 में हुआ था और वह मीर के समकालीन थे। सौदा दिल्ली छोड़कर फरुखाबाद, फैजाबाद पहुंचे और फिर लखनऊ आए। वो समन्दर है कि जिसका न कहीं पाट लगे, कश्तिए उम्र मेरी देखिए किस घाट लगे. कहने वाले सौदा का निधन 1781 में लखनऊ में हुआ।
लखनऊ में सौदा की स्मृति के रूप में चौक स्थित आगा बाकर इमामबाड़े में उनकी कब्र तो मौजूद है लेकिन, उसे स्मारक का रूप नहीं दिया जा सका है। उनकी कब्र कब्रिस्तान की तमाम कब्रों के बीच है जिसे काफी मुश्किल से ढूंढना पड़ता है। कब्र पर कई लोग जूते चप्पल पहनकर ही गुजर जाते हैं। नगर में उनकी स्मृति को सहेजने की कोई कोशिश नहीं हुई है। ज्यादातर लोगों को तो शायद यह मालूम भी न हो कि गजल और कसीदे का इतना बड़ा शायर अपने अन्तिम दिनों में लखनऊ में रहा और यहीं आखिरी सांस ली।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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