बुधवार, 25 जून 2014

सूक्ष्म जीव प्रौद्योगिकी का लें सहारा



राइजोबियम टीका:  राइजोबियम टीका दलहन व तिलहन बीजों और चारे वाली फसलों में 
प्रभावकारी सहजीवी है। इससे 50 से 100 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर प्राप्त होती है। बीज को 
राइजोबियम टीके द्वारा उपचारित करने पर अनुपचारित के मुकाबले 10 से 70 प्रतिशत की उपज 
में वृद्धि होती है। यह वृद्धि कृषि जलवायु परिस्थिति, उगाई फसल तथा कीट नियंत्रण के तरीके पर
 निर्भर करती है। टीका प्रत्येक दलहन के लिए विशिष्ट है। अत: प्रत्येक फसल जैसे चना, मसूर,
मटर, सोयाबीन, मूँगफली, अरहर, मूँग, उर्द, लोबिया, बरसीम, रिजका, ढ़ैंचा, एवं सनई के लिए 
अनुमोदित टीके का ही प्रयोग करें।
एजोटोबैक्टर टीका: इस टीके का प्रयोग अदलहनी फसलों जैसे गेहूँ, धान, मक्का, जाै, टमाटर, कपास 
एवं सरसों की फसल के लिए अनुमोदित किया जाता है। एजोटोबैक्टर वायुमंडलीय नत्रजन को 
 शोखकर मृदा में स्थिरीकरण करता है। इस प्रकार से यह 15- 20 किलोग्राम नत्रजन की बचत में 
सहायक है। एजोटोबैक्टर पादप वृद्धि को बढ़ाने वाले पदार्थो का स्राव भी करता है। इससे बीज 
 अंकुरण व जड़ों का विकास अच्छा होने के साथ-साथ पोषक तत्व उपलब्धता में भी बढ़ोत्तरी 
होती है। उक्त तत्व रोग कारक सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को जड़ क्षेत्र में कम कर देता है। इससे 
पादप रोगों द्वारा फसल को कम हानि होती है। एजोटोबेक्टर से उपचारित फसल से प्राप्त उपज 
बगैर उपचारित फसल की तुलना में 10 से 20 प्रतिशत अधिक होती है।
एजोस्पिरिलम टीका: यह टीका अदलहनी फसलों जैसे ज्वार, बाजरा,, रॉगी एवं अन्य मोटे अनाजों 
के अलावा जई आदि के लिए प्रयोग में लाया जाता है। अन्य चारे वाली घासों में भी इसके प्रयोग 
से काफी अच्छे परिणाम मिलते हैं।
फास्फेट विलायक जीवाणु टीका: इस टीके से उपचारित बीज व मृदा में बगैर घुली हुई फास्फोरस 
का भी उपयोग हो जाता है। उक्त जीवाणु ठोस फास्फोरस को घोलकर पौधों तक पहुंचा देते हैं। 
सका प्रयोग गेहँू, धान, लोबिया, मसूर, चना, आलू आदि ज्यादा फास्फोरस अवशोषण करने वाली 
 फसलों में किया जाता है। इस टीके की मदद से 40 प्रतिशत तक सुपर फॉस्फेट की बचत हो 
जाती है।
जीवाणु टीके की प्रयोग विधि: उक्त टीकों से बीजोपचार किया जाता है। बाजार में इनके 150 से 
200 ग्राम तक के पैकिट मिलते हैं। यह पैकिट एक एकड़ में बाए जाने वाले बीज के लिए पर्याप्त 
रहता है। इसके लिए गुड़ या चीनी का पांच प्रतिशत का घोल तैयार किया जाता है। इस घोल में 
पानी की मात्रा केवल इतनी होनी चाहिए कि बीज गीला हो जाए। घोल को उवालकर ठंडा करलें।
घोल में टीके का पैकिट डालदें। बाद में इस घोल का लेप बीज के दानों पर कर दें। उपचारित 
बीजों को छाया में सुखाकर तत्काल बुवाई कर दें।
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Source – KalpatruExpress News Papper

















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