रविवार, 8 जून 2014

हम बेजार बैठे हैं.



हिंदी की पहली कहानी रानी केतकी की कहानीऔर फारसी भाषा में उर्दू के व्याकरण और साहित्य पर पहली किताब दरया-ए-लताफतलिखने वाले सैयद इंशा अल्ला खां इंशाप्रसिद्ध दरबारी शायर थे। वे नवाब सआदत अली खान के दरबार में थे। हालांकि, समीक्षकों का मानना है कि जो ख्याति उन्हें उनके गद्य ने दिलाई, वह शायरी में नहीं मिल सकी। इसका कारण यह भी था कि उन्होंने कई रचनाएं मसखरी के लिए लिखीं।
कमर बांधे हुए चलने को यां सब यार बैठे हैं, बहुत आगे गए बाकी जो हैं तैयार बैठे हैं..,गया हुस्ने खूबांने दिल ख्वाह का हमेशा रहे, नाम अल्लाह का..जैसे शेर लिखने वाले इंशा का निधन 1817 में हुआ।
कहा जाता है कि उनका आखिरी वक्त काफी मुश्किल में गुजरा और वे गरीबी में रहे। मृत्यु के बाद इन्हें भी लखनऊ में चौक स्थित आगा बाकर इमामबाड़े में दफनाया गया था लेकिन वर्तमान में उनकी कब्र इमामबाड़े में कहां है कोई नहीं जानता।
इमामबाड़े के मैनेजर रियाज खान को भी इंशा की कब्र के विषय में कोई जानकारी नहीं है। पूछने पर वह कहते हैं, ‘यहां सैकड़ों की संख्या में कब्रे हैं।
अगर कोई जान-पहचान वाला यहां आता रहे उनकी कब्र पर अगरबत्ती जलाकर फू ल चढ़ाता रहे, तभी पता लग पाता है कि किसकी कब्र कहां है, अन्यथा बहुत मुश्किल है। और इंशा की कब्र के लिए कभी कोई भी उनका कद्रदान यहां नहीं आया।इंशा उर्दू के अलावा अरबी, फारसी, तुर्किश और पंजाबी में भी कविताएं लिखते थे।
वर्ष 1757 में जन्में इंशा कुछ वक्त दिल्ली में रहने के बाद वर्ष 1791 में लखनऊ आए।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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