बुधवार, 25 जून 2014

सूखे में बहाई दूध की धारा जाने कैसे ?



राजस्थान में भले ही सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं है लेकिन यहाँ के किसान पशुपालन भी बेहद रुचि से करते हैं।
पशुपालन के लिए जरूरी चारा भी वह बेहद मुश्किलों में उगा पाते हैं लेकिन इससे उन्हें पारिवारिक जरूरतों के लिए धन तो मिलता ही है बच्चों के पोषण के लिए प्राकृतिक टॉनिक दूध-दही और मठा भी मिल जाता है। कुम्हेर पंचायत समिति क्षेत्र के अधैयाखुर्द गांव निवासी रनवीर सिंह खेती में घट रहे मुनाफे को लेकर चिंतित थे। उन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए विभिन्न गोष्ठियों आदि में भाग लिया। इससे उन्हें समझ आई कि बगैर पशुओं के खेती अधूरी है। अब उन्होंने पशुपालन को आधुनिक डेयरी के रूप में शुरू करने का विचार बनाया। इसके लिए जरूरी मदद पाने को उन्होंने एक स्वयंसेवी संस्था से संपर्क किया। संस्था ने अपने विशेषज्ञों की मदद से उन्हें यथा संभव सहयोग किया। नाबार्ड के सहयोग से 1 लाख रुपये एवं पंजाब नेशनल बैंक से 2 लाख रुपये का आसान शर्तों पर ऋण मुहैया कराया। इस ऋण राशि से रनवीर ने पशुओं के रख-रखाव के लिये आधुनिक तरीके से शेड बनवाया और मुर्रा नस्ल की भैंसे खरीदकर दुग्ध डेयरी का कार्य शुरू किया।इसका परिणाम रहा दो वर्ष में उसे प्रतिमाह 25 से 30 हजार रुपये मिलने लगे हैं। दुग्ध डेयरी के साथ रनवीर सिंह ने वैज्ञानिक पद्घति के आधार पर सब्जियों की खेती भी शुरू की जिससे उसकी आमदनी और बढ़ गयी। आज वह भरतपुर जिले के प्रमुख दुग्ध डेयरी संचालकों में शामिल हैं।रनवीर को दुग्ध डेयरी के साथ गोबर गैस संयंत्र लगाने के लिये भी 8 हजार रुपये का अनुदान प्रदान किया। इस अनुदान राशि से उसने गोबर गैस संयंत्र स्थापित कर घरेलू ऊ र्जा की आवश्यकता की पूर्ति की और संयंत्र से निकलने वाली सैलरी का उपयोग जो खाद के रूप में करने लगा जिससे कृषि कार्य में रासायनिक खादों की निर्भरता काफी कम हो गयी। रनवीर प्रतिदिन लगभग 60 लीटर दूध 45 रुपये प्रति लीटर की दर से विक्रय कर आसानी से औसतन 25-30 हजार रुपये प्रतिमाह कमा रहे हैं।
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Source – KalpatruExpress News Papper


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