मंगलवार, 10 जून 2014

आजीवन कष्टदायी है छाल रोग



सोरियासिस यानी छाल रोग यूं तो किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है मगर 30-40 वर्ष की उम्र के व्यक्तियों में अधिक पाया जाता है। यह जीवनपर्यन्त चलने वाला रोग है। इसे इलाज से नियंत्रित किया जा सकता है मगर जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता है। आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में लगभग दो से तीन फीसदी लोग छाल रोग से पीड़ित हैं लेकिन त्वचा रोग विशेषज्ञों के अनुसार धीरे-धीरे इस रोग में इजाफा हो रहा है। इस विषय पर त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. निशा महेश्वरी से बातचीत के आधार पर रिया तुलसियानी की रिपोर्ट..
डॉ. निशा महेश्वरी
मनुष्य शरीर में त्वचा महत्त्वपूर्ण और जटिल हिस्सा है जिसके अंदर रक्तवाहिनियां, नाड़ियां, ग्रंथियां व कोशिकाएं होती हैं जो शरीर के अन्य अंगों की रक्षा करती हैं। कोशिकाएं पुरानी होने के साथ-साथ अपने आप शरीर से झड़ती रहती हैं, जिसमें लगभग तीन से चार सप्ताह का वक्त लग सकता है। लेकिन छाल रोग से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है और तीन-चार दिन में ही वे कोशिकाएं झड़ने लगती हैं।
अधिक संख्या में कोशिकाओं के झड़ने से त्वचा पर घाव हो जाते हैं और रोग बढ़ जाता है जिससे लाल धब्बे, मोटे चकत्ते, खुजली, हथेलियों और पैरों के तलवे में फफोले, सिर में मोटे चकत्ते इत्यादि जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं।
इन चकत्ताें में जलन और दर्द भी होता है। यह दीर्घकालीन और असंक्रामक विकार है जिसे कभी ठीक नहीं किया जा सकता, सिर्फ नियंत्रित किया जा सकता है। हो सकता है इलाज के दौरान त्वचा से लाल चकत्ते खत्म हो जाएं या हल्के हो जाएं और सालों तक नजर न आएं लेकिन फिर अचानक कभी भी उभर सकते हैं। यह प्रकिया कुछ हफ्तों में भी हो सकती है और कुछ सालों में भी। यह पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से हो सकता है।
इस रोग में त्वचा के ऊपर लाल, सूखी चकत्तेदार परत चढ़ जाती है। वे चकत्ते सूखकर पपड़ी के रूप में उतरते रहते हैं और नए चकत्ते बनते रहते हैं। देखने में त्वचा विकृत और भद्दी लगती है। चकत्ते अधिक बढ़ जाने से खुजली के बाद रक्त भी निकल सकता है लेकिन मवाद नहीं भरता है। यदि समय रहते इलाज शुरू नहीं किया गया तो ये लक्षण शुरुआत में कम लेकिन धीरे-धीरे विकराल रूप धारण कर लेते हैं। इस रोग के अधिक बढ़ जाने के बाद या फिर जिन्हें यह रोग कई सालों से हो उनके शरीर के कोई भी जोड़ प्रभावित हो सकते हैं, जिसे सोरियाटिक आर्थराइटिस कहते हैं। जोड़ों तक सोरियासिस पहुंचने के बाद मरीज को हड्डी रोग विशेषज्ञ के पास भी जाना पड़ता है। इसके अतिरिक्त नाखूनों में खराबी हो सकती है। नाखूनों में लाइनें पड़ जाती हैं। कई बार हृदय सम्बन्धी और हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे कैंसर की संभावना हो सकती है इसलिए छाल रोग के उपचार के साथ कैंसर विरोधी दवाइयां भी दी जाती हैं। यह बीमारी सिर्फ सिर में भी हो सकती है, बालों के बीच में जगह-जगह पर मोटे चकत्ते पड़ जाते हैं, इसे स्कैल्प सोरियासिस कहते हैं।
छाल रोग के कारण-
 हालांकि छाल रोग के कोई निश्चित कारण नहीं पता लग पाए हैं लेकिन इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरोधक क्षमता में खराबी के कारण इस रोग का जन्म होता है। दूसरा, यह रोग आनुवंशिक हो भी सकता है और नहीं भी। कई बार परिवार के किसी सदस्य को होने पर दूसरे सदस्य को हो भी सकता है और नहीं भी। लेकिन, अक्सर यह परिवार में पहली बार ही देखा जाता है। शरीर स्वयं ही इस रोग का वाहक है इसलिए यह किसी को भी हो सकता है।
लेकिन, यह रोग असक्रांमक है, छूने से नहीं फैलता है।
गर्मियों में यह रोग कम हो जाता है लेकिन सर्दियों में धूप कम मिलने से बढ़ जाता है। एक बार जो इस रोग की चपेट में आ जाता है उसे जीवनपर्यन्त कष्ट भोगना पड़ता है इसलिए बेहतर है कि शुरू में ही जान लें कि यह ठीक नहीं होने वाला रोग है, दवाईयों और परहेज से नियंत्रण में रखें। कई बार ऐसा भी होता है कि जब जुड़वा बच्चों में एक बच्चे को छाल रोग हो तो दूसरे बच्चे में भी यह रोग होने की 80 फीसदी संभावनाएं होती हैं।
 छाल रोग से पीड़ित इससे बचें-
 1- हल्की धूप में बैठें लेकिन तेज धूप से बचें।
2-  भावनात्मक और मानसिक तनाव से बचें।
3-  कुछ दवाईयों से भी छाल रोग बढ़ता है, हमेशा डॉक्टर की सलाह से दवा खाएं ञ्च योगा करें, इससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
4-  सुबह शाम टहलें और जंक फूड से परहेज करें।
5-  ऐसे कपड़े न पहनें जो त्वचा के सम्पर्क में आकर नुकसान पहुंचाएं।
6-  नये कपड़े धोकर पहनें।
7-  त्वचा को ज्यादा खरोंचें नहीं, खुजली होने पर नियंत्रण रखें।
8- धूम्रपान व मद्यपान से परहेज करें।
9- चाय व कॉफी कम पीयें।
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Source – KalpatruExpress News Papper







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