गुरुवार, 10 जुलाई 2014

पगडंडी



चौड़े रस्ते ने पास चलती पगडण्डी से कहा अरी पगडण्डी मेरे रहते मुझे तुम्हारा आस्तित्व अनावश्यक जान पड़ता हैं। व्यर्थ ही तुम मेरे आगे पीछे जाल सा बिछाए चलती हो।
पगडण्डी ने भोलेपन से कहा ,’नहीं जानती, तुम्हारे रहते लोग मुझपर क्यों चलते हैं। पहले एक चला फिर दूसरा चला। और फिर तीसरा , इस तरह मेरा जन्म ही अनायास और अकारण हुआ।
रस्ते ने घमंड के साथ कहा – ‘मुझे तो लोगो ने बड़े यत्न के साथ बनाया हैं , मैं अनेक शेहरो गाँवो को जोड़कर चलता हूँ।
पगडण्डी आश्चर्य से सुन रही थी। सच ? उसने कहा ,’मैं तो बहुत छोटी हूँ।
तभी एक विशाल वाहन घरघराकर रस्ते पर रुक गया।सामने पड़ी छोटी पुलिया के एक तरफ बोर्ड लगा था, “बड़े वाहन सावधान। पुलिया कमजोर हैं।
वाहन एक भरी हुई यात्री गाड़ी थी, जो पुलिया पर से नहीं जा सकती थी।पूरी गाड़ी खाली करवाई गयी।लोग पगडण्डी पर चलदिए। पगडण्डी पुलिया वाले सूखे नाले से जाकर, फिर उसी रास्ते से मिलती थी। उस पार फिर यात्रियों को बैठाकर गाड़ी चल दी।
रस्ते ने एक गहरा निश्वास छोड़ा! अरी पगडण्डी! आज मैं समझा छोटी से छोटी वस्तु, वक्त आने पर मूल्यवान बन जाती हैं।
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Courtesy- Hindisoch.net


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