शनिवार, 9 अगस्त 2014

स्वामी विवेकानंद के जीवन के तीन प्रेरक प्रसंग


प्रेरक प्रसंग : पुत्र के लिए प्रार्थना
प्रत्येक माता के मन में यह भाव स्वाभाविक होता है कि उसकी संतान कुल की कीर्ति को उज्जवल करे. प्रथम दो संताने
Swami Vivekananda
शिशुवय में ही मर गयी थीं, इसीलिए माता भुवनेश्वरी देवी प्रतिदिन शिवजी को प्रार्थना करती कि हे शिव ! मुझे तुम्हारे जैसा पुत्र दो.काशी में निवास कर रहे एक परिचित व्यक्ति को कह कर उन्हों ने एक वर्ष तक वीरेश्वर शिवजी की पूजा भी करवाई थी.
माता भुवनेश्वरी का मन-चित्त भगवान शंकर को सतत याद करके प्रार्थना किया करता. एक रात्रि को स्वप्नमें उन्हें महादेव जी को बाल रूप में अपनी गोद में विराजित भी देखा. जागने के बाद वे जय शंकर, जय भोलेनाथ !ऐसा बोल कर
प्रार्थना करने लगीं. थोड़े महिनो के बाद उन्होंने पुत्रको जन्म दिया. दि.१२ जनवरी, 1863 का दिन और पवित्र मकरसंक्रांति जैसे पर्व पर महादेव जी की कृपा से प्राप्त हुए पुत्र को माता ने नाम दिया वीरेश्वर’. लेकिन लाड-प्यार में सब उसे बिलेकहेकर बुलाते थे. थोड़े समय के पश्चात् उसका नाम नरेन्द्रनाथरखा गया. और आगे चल कर यही नरेंद्रनाथ स्वामी विवेकानंद के नाम से पूरे विश्व में विख्यात हुआ।
प्रेरक प्रसंग : सच्ची शिवपूजा
नरेन्द्र की आयु ६ वर्षकी थी. अपने मित्रो के साथ वह मेले में गया. मेले में से नरेन्द्र ने एक शिव जी की मूर्ति खरीदी. मेले में समय कब बीत गया पता ही नहीं चला , संध्या हुई, अँधेरा छाने लगा तब नरेन्द्र तथा सभी मित्र जल्दी से चलते-चलते घर की ओर जाने लगे.
नरेन्द्र अपने मित्रों के एक हाथ में मूर्ति लिए आगे-आगे चल रहा था, पर उनमे से एक मित्र कुछ पीछे रह गया था. अचानक नरेन्द्र ने उसे मुड़ कर देखा कि एक घोड़ागाड़ी उस मित्र की तरफ तेज गति से आ रही है . टक्कर निश्चित जान पड़ रही थी पर ऐसी स्थिति में भी नरेंद्र घबराया नहीं , वह एकहाथ में शिवजी की मूर्ति लिए ही एकदम से दौड़ पड़ा। देखने वाले चीखे , “अरे ! गया, अरे ! गया’” पर ऐन मौके पर नरेंद्र ने मित्र का हाथ पकड़कर एक ओर खींच लिया.
छोटे लड़केकी बहादुरी तथा समयसूचकता को देखकर सभी दंग रहे गए. नरेन्द्र ने घर जाकर जब माँ को यह बात बताई तब माँ ने उसे अपने दिल से लगा कर कहा कि मेरे बेटे ! आज तूने एक बहादुरी का काम किया है. ऐसे कार्य हंमेशा ही करते रहना. तेरे ऐसे काम से मुझे बहुत प्रसन्नता होगी. और यही सच्ची शिवपूजा है.
प्रेरक प्रसंग : नरेन्द्र की हिम्मत तथा करुणा
नरेन्द्र नियमित व्यायामशाला में जाता था. अखाड़ा का सदस्य बनकर नरेन्द्रनाथ ने लाठी-खड़ग चलाना सीखा. तैरना, नौकाचालन, कुस्ती तथा अन्य खेलों में भी प्रवीणता प्राप्त की. एकबार बॉक्सिंगकी एक प्रतिस्पर्धा में उन्हें प्रथम पुरस्कार भी मिला था.
एक दिन मित्रों के साथ मिलकर मैदान में वह एक खम्भा खड़ा कर रहा था. रास्ते से गुजर रहे लोग देखने के लिए खड़े हो जाते , लेकिन कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आता. उसी समय एक अंग्रेज नाविक वहाँ आया ओर वह भी लड़कों की मदद करने लगा. सब मिलकर एक भारी खम्भा उठा रहे थे , तभी अचानक खम्भा उस नाविक के माथे पर आ टकराया ओर उसे गंभीर चोट लगी. वह बेहोश हो गया. सभी को लगा कि वह मर गया. नरेन्द्र ओर एक-दो मित्रों के अलावा सभी डर कर भाग गए. नरेन्द्र ने अपनी धोती फाड़ कर उसकी पट्टी बना बेहोश नाविक के माथे पर बांधी. फिर उसके मुह पर जल का छिड़काव किया. थोड़ी देर के बाद जब वह होश में आया तो उसे पासवाले स्कूलमें ले जाकर सुलाया. डॉक्टर को बुलाया गया और उसका उपचार कराया गया . जब तक वह नाविक अच्छा नहीं हुआ तब तक उसका खाना-पीना, दवाई का प्रबन्ध किया गया. बाद में जब वह ठीक हो गया तब मित्रों के पास से पैसे इकट्ठे कर उसे विदा किया गया। नरेंद्र और साथियों के इस व्यवहार से अंग्रेज नाविक भी गदगद हो गया !
दिलीप पारेख
सूरत, गुजरात
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We are grateful to Dilip Ji for sharing these inspirational incidents from Swami Vivekananda’s life in Hindi with FV readers.

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