मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

एक अभिशप्त उपहार कोहिनूर



kohinoor

कहा जाता है कुछ चीजें अभिशप्त होती हैं उसे पूरी तरह ख़त्म कर देती है | भारत की खदान से निकला कोहिनूर हीरा भी एक ऐसा ही अभिशप्त उपहार था ,जिसके पास भी गया उसे पूर्णतया ख़त्म कर दिया | दक्षिण भारत के गोलकुंडा खदान से निकल हिरा कोहिनूर हीरा कब इंसान को मिला ,इसका कोई जिक्र इतिहास में नहीं है |परन्तु इससे जुड़ी दुर्भाग्य और दुनिया पर राज करने की कहानियां विश्व भर के इतिहास गाथाओं में लिखी मिलती है |

800 साल और 800 कैरेट-
कोहिनूर हीरे ने भारत के काकतीय राजवंश, मुगल सल्तनत, पंजाब के राजा रंजीत सिंह और अंग्रेजों, सभी को दुनिया पर राज करने का सपना दिखाया और इसके बाद उन्हें बहुत बुरा अंत दिया। माना जाता है कि हीरा 12 वीं शताब्दी के आस-पास बाहर आया। तब इसका वजन 800 कैरेट से भी ज्यादा था। कोहिनूर का ज्ञात इतिहास ग्वालियर के राजा से शुरू होता है लेकिन वह अधिक दिन शासन नहीं कर पाया। 14वीं सदी में कोहिनूर हीरा काकतीय वंश के हाथ आया और 300 वर्ष से चल रहा शासन तुगलक शाह प्रथम के साथ हुए युद्ध में खत्म हो गया। इसके बाद हीरा मोहम्मद बिन तुगलक के हाथ लगा जहां से एक के बाद कई राजवंशों का खात्मा करते हुए यह मुगल सल्तनत तक पहुंचा। मुगल बादशाह शाहजहां ने इसे अपने मयूरासन में जड़वाया, लेकिन उसे अपने अंत समय में बेटे औरंगजेब के हाथों बंदी बनना पड़ा और नादिर शाह के हाथों मुगल सल्तनत का अंत शुरू हो गया। नादिर शाह ने ही इस भव्य हीरे को कोहिनूर नाम दिया। 1747 में नादिर शाह की हत्या हो गई और कोहिनूर अफगानिस्तान के शहंशाह अहमद शाह दुर्रानी के पास चला गया। जहां से यह पंजाब के राजा रंजीत सिंह के पास आया। कोहिनूर के आते ही सिख राज्य का बुरा समय शुरू हो गया और पंजाब अंग्रेजों के अधीन हो गया।

क्या हट गया हीरे का शाप
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शापित हीरे की कहानियों से प्रभावित होकर ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया ने वसीयत की कि इस हीरे को सिर्फ महिलाएं ही पहनेंगी यदि कोई पुरुष राजा बनता है तो उसकी प}ी ही कोहिनूर जड़ा ताज पहनेगी। पर इसका असर खत्म नहीं हुआ और ब्रिटेन के अधीन देश एक- एक कर स्वतंत्र हो गए।


आज तक बिका नहीं
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कोहिनूर दुनिया का एकमात्र हीरा है जो आज तक कभी भी बेचा या खरीदा नहीं गया। इसे या तो एक राजा द्वारा दूसरे राजा को उपहार दिया गया है अथवा इसे विजेता राजा द्वारा पराजित राजा से छीना गया। आज तक इसकी कोई भी कीमत नहीं लग पाई है। इसके ऐतिहासिक महत्त्व की कहानियों को देखकर इसकी कीमत भविष्य में भी शायद ही लग पाएगी।


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